हमारे देश को समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक  हाईकोर्ट ने RFA नंबर 935/2020 और RFA क्रॉस आपत्ति नंबर 33/2023 में सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि हमारे देश को समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति हंचटे संजीवकुमार ने मामले में आंशिक रूप से अपील और क्रॉस आपत्ति को मंज़ूरी दी और ट्रायल कोर्ट के निर्णय में संशोधन करते हुए संपत्ति में कानूनी उत्तराधिकारियों के हिस्से को पुनः निर्धारित किया।

मामले की पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता/वादकारी—सामीउल्ला खान, नूरुल्ला खान (जिनका देहांत हो चुका है और उनके कानूनी वारिसों द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया), और राहत जान—मृतक शहनाज़ बेग़म के भाई-बहन हैं। इन्होंने शहनाज़ बेग़म की संपत्तियों में हिस्सेदारी और पृथक स्वामित्व की मांग की थी। प्रतिवादी/प्रत्युत्तरकर्ता सिराजुद्दीन मक्की मृतका के पति हैं।

यह मामला मूल रूप से LXXII अतिरिक्त सिटी सिविल एवं सत्र न्यायालय, बेंगलुरु में दायर किया गया था, जहाँ 12 नवम्बर 2019 को आंशिक रूप से निर्णय सुनाया गया था। अदालत ने दोनों संपत्तियों में पक्षकारों को हिस्से आवंटित किए थे।

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पक्षकारों की दलीलें

वादी पक्ष का कहना था कि शहनाज़ बेग़म दोनों संपत्तियों (शेड्यूल ‘A’ और ‘B’) की पूर्ण स्वामी थीं, जो उन्होंने क्रमशः 3 दिसंबर 1987 और 9 फरवरी 2010 को रजिस्टर्ड सेल डीड के ज़रिए खरीदी थीं। उनके अनुसार, मृतका की मृत्यु (6 जनवरी 2014) के बाद वे 50% हिस्से के हकदार हैं।

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वहीं, प्रतिवादी ने तर्क दिया कि संपत्तियाँ भले ही पत्नी के नाम पर थीं, परंतु उन्होंने अपने प्रेम और स्नेह के कारण अपनी कमाई से ये संपत्तियाँ खरीदी थीं और इस पर उनका पूर्ण स्वामित्व है। उन्होंने यह भी कहा कि वादी द्वारा दायर वाद सीमा-काल से बाहर है।

निचली अदालत का निर्णय

ट्रायल कोर्ट ने यह माना:

  • शेड्यूल ‘A’ संपत्ति पति-पत्नी द्वारा संयुक्त रूप से अर्जित की गई थी।
  • शेड्यूल ‘B’ संपत्ति शहनाज़ बेग़म की स्वयं की अर्जित संपत्ति थी।

इसके आधार पर निम्नलिखित हिस्से निर्धारित किए गए:

  • वादी संख्या 1 और 2 को दोनों संपत्तियों में 1/10वाँ हिस्सा।
  • वादी संख्या 3 को 1/20वाँ हिस्सा।
  • प्रतिवादी को ‘A’ संपत्ति में 3/4वाँ और ‘B’ संपत्ति में आधा हिस्सा।

हाईकोर्ट का विश्लेषण

 हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की इस राय से असहमति जताई कि ‘B’ संपत्ति शहनाज़ बेग़म ने अकेले अर्जित की थी। न्यायमूर्ति संजीवकुमार ने माना कि दोनों संपत्तियाँ पति-पत्नी की संयुक्त कमाई से ली गई थीं।

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“प्रतिवादी और मृतका शहनाज़ बेग़म दोनों शिक्षक थे… उन्होंने मिलकर संपत्ति मृतका के नाम पर खरीदी,” अदालत ने कहा।

कोर्ट ने 614 दिनों की देरी को भी माफ कर दिया, यह मानते हुए कि प्रतिवादी की उम्र और स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए देरी उचित थी।

मुस्लिम विधि का प्रयोग

न्यायालय ने मुस्लिम उत्तराधिकार कानून की व्याख्या मुल्ला की मोहम्मडन लॉ की मदद से की और निर्णय दिया:

  • प्रतिवादी को 50% हिस्सा संयुक्त स्वामी के रूप में मिलेगा।
  • शेष 50% हिस्सा इस्लामी उत्तराधिकार नियमों के अनुसार बांटा जाएगा:
    • वादी संख्या 1 और 2 (भाई) को 1/10वाँ हिस्सा।
    • वादी संख्या 3 (बहन) को 1/20वाँ हिस्सा।

अंतिम वितरण इस प्रकार किया गया:

  • प्रतिवादी: दोनों संपत्तियों में 3/4वाँ हिस्सा।
  • वादी संख्या 1 और 2: 1/10वाँ हिस्सा प्रत्येक।
  • वादी संख्या 3: 1/20वाँ हिस्सा।

समान नागरिक संहिता पर टिप्पणी

न्यायालय ने मुस्लिम कानून के अनुसार उत्तराधिकार तय करते हुए, हिंदू और मुस्लिम उत्तराधिकार कानूनों में असमानता पर चिंता व्यक्त की। न्यायमूर्ति संजीवकुमार ने कहा:

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“हमारे देश को उनके व्यक्तिगत कानूनों और धर्मों के संदर्भ में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है, तभी संविधान के अनुच्छेद 14 का उद्देश्य पूरा होगा।”

उन्होंने संविधान सभा की बहसों और मो. अहमद खान बनाम शाह बानो बेग़म तथा सारला मुद्गल बनाम भारत संघ जैसे सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों का हवाला भी दिया और समान नागरिक संहिता के लिए विधायी कदम उठाने का आह्वान किया।

हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को आंशिक रूप से संशोधित करते हुए दोनों संपत्तियों को संयुक्त रूप से अर्जित मानते हुए हिस्सेदारी का पुनः निर्धारण किया।

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