सार्वजनिक सुनवाई मात्र एक औपचारिकता नहीं, बल्कि पर्यावरणीय न्याय की एक महत्वपूर्ण गारंटी है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

पर्यावरणीय शासन में जनसहभागिता की भूमिका को रेखांकित करते हुए, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि पर्यावरणीय मंजूरी की वैधानिक प्रक्रिया में प्रभावित ग्रामीणों की शिकायतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह फैसला न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी और न्यायमूर्ति महेश्वर राव कुंचेम की खंडपीठ ने 25 मार्च 2025 को रिट याचिका संख्या 7163/2025 में सुनाया, जो कि वन्नापूसा शिव शंकर रेड्डी और वाईएसआर कडप्पा जिले के चार अन्य ग्रामीणों द्वारा दायर की गई थी।

प्रकरण की पृष्ठभूमि

यह याचिका M/s डालमिया सीमेंट (भारत) लिमिटेड द्वारा अपने संयंत्र की उत्पादन क्षमता को 4.6 मिलियन टन प्रति वर्ष से बढ़ाकर 12.6 मिलियन टन प्रति वर्ष और चूना पत्थर खनन को 3.819 से 11.32 मिलियन टन प्रति वर्ष करने के प्रस्ताव के खिलाफ दायर की गई थी। यह विस्तार नवाबपेटा और तालामंचीपट्टनम गांवों में प्रस्तावित था।

आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (APPCB) ने 21.02.2025 को एक अधिसूचना जारी कर 27.03.2025 को इस विस्तार के पर्यावरणीय प्रभाव पर एक सार्वजनिक सुनवाई आयोजित करने की सूचना दी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह सुनवाई पर्यावरणीय और मानवीय चिंताओं को नजरअंदाज करते हुए जल्दबाज़ी में कराई जा रही है, विशेष रूप से प्राकृतिक जलधाराओं को रोकने के कारण बाढ़ की समस्या गंभीर है।

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मुख्य कानूनी प्रश्न

  • क्या उच्च स्तरीय शिकायत निवारण समिति की रिपोर्ट को ध्यान में लिए बिना सार्वजनिक सुनवाई कराना उचित है?
  • क्या डालमिया सीमेंट द्वारा प्रस्तुत आवेदन में पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर भ्रामक जानकारी दी गई?
  • क्या याचिकाकर्ताओं को इस चरण पर परियोजना को चुनौती देने का अधिकार (locus standi) है?
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पक्षकारों की दलीलें

याचिकाकर्ता की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता श्री के.एस. मूर्ति (सहायक: श्री के. गुरु राजा) ने तर्क दिया कि डालमिया सीमेंट ने अपने आवेदन (फॉर्म-I, क्रमांक 1.24) में यह झूठा दावा किया कि जल निकायों या भू-सतह में कोई बदलाव नहीं होगा। जबकि सच्चाई यह है कि जल निकासी के स्वरूप में बदलाव के कारण अचानक आई बाढ़ों से गांव डूब रहे हैं और फसलें व मकान नष्ट हो रहे हैं। उन्होंने लोकायुक्त की रिपोर्टों का हवाला दिया, जिसमें पर्यावरणीय और कृषि क्षति की जांच हेतु उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश की गई थी।

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सरकारी पक्ष की ओर से: श्रीमती के. विजयेश्वरी (AGP) और श्री येलिसेट्टी सोमा राजू (प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वकील) ने कहा कि सार्वजनिक सुनवाई परामर्श प्रक्रिया का हिस्सा मात्र है, और सभी आपत्तियां वहीं उठाई जा सकती हैं।

डालमिया सीमेंट की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता श्री पोसानी वेंकटेश्वरलु (सहायक: श्री विमल वर्मा वासिरेड्डी) ने कहा कि याचिका समयपूर्व है और याचिकाकर्ताओं को इस समय इसे चुनौती देने का अधिकार नहीं है, क्योंकि सुनवाई में आपत्तियां दर्ज की जा सकती हैं।

न्यायालय के विचार

लौकस स्टैंडी (locus standi) पर आपत्ति खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा:

“जब याचिकाकर्ताओं को अधिसूचना के तहत सुने जाने और लिखित आपत्ति प्रस्तुत करने का अधिकार है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि उन्हें याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि 14.09.2006 की ईआईए अधिसूचना के तहत जनसुनवाई केवल औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण मंच है:

“यदि कोई तथ्य जनसुनवाई कराने वाली अथॉरिटी के संज्ञान में लाया जाता है… तो यह नहीं माना जाएगा कि याचिकाकर्ताओं की आपत्ति स्वीकार या विचार नहीं की जाएगी।”

कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि अधिसूचना के पैरा 8(vi) के तहत नियामक प्राधिकरण को यह अधिकार है कि यदि कोई जानबूझकर गलत या भ्रामक जानकारी दी गई हो, तो वह पर्यावरणीय मंजूरी रद्द कर सकता है।

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अंतिम आदेश

हाईकोर्ट ने याचिका का निस्तारण करते हुए निम्न निर्देश दिए:

  • याचिकाकर्ता 27.03.2025 को होने वाली सार्वजनिक सुनवाई में भाग लें और लोकायुक्त की रिपोर्ट समेत अन्य सामग्री के साथ लिखित आपत्तियां प्रस्तुत करें।
  • APPCB और संबंधित प्राधिकारी इन आपत्तियों को नियामक प्राधिकरण को भेजें।
  • नियामक प्राधिकरण इन आपत्तियों पर विचार कर निर्णय ले और कारणयुक्त आदेश पारित करे।
  • अंतिम निर्णय याचिकाकर्ताओं को अवश्य सूचित किया जाए।

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