भारत के संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान को समाज की बदलती सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक ज़रूरतों के अनुरूप प्रासंगिक बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्होंने कहा, “शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने से लेकर सतत विकास और मनमाने निर्णयों के खिलाफ मानदंड तय करने तक, सुप्रीम कोर्ट ने देश की बढ़ती चुनौतियों का समाधान करने के लिए हमारे संवैधानिक ढांचे को लगातार विकसित किया है।”
मेहता ने शायरा बानो मामले का विशेष रूप से उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की विवादास्पद प्रथा को समाप्त कर महिलाओं के अधिकारों को मज़बूती दी और लैंगिक भेदभाव को खत्म करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की भूमिका की सराहना करते हुए कहा, “यह केवल संविधान का रक्षक नहीं, बल्कि नागरिकों के मौलिक और मानव अधिकारों का अंतिम व्याख्याता और रक्षक भी है।” उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर संविधान की व्याख्या कर उसे वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप ढालने का कार्य किया है।
हालांकि, मेहता ने लंबित मामलों पर चिंता जताई और बताया कि वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में लगभग 80,000 मामले लंबित हैं। उन्होंने न्याय तक पहुंच को बेहद जरूरी बताते हुए 2022 में सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी की याद दिलाई, जिसमें कहा गया था कि वकालत अब सेवा-आधारित पेशा नहीं रह गई है और युवा वकीलों को कमजोर वर्गों के लिए कानूनी सहायता देने में आगे आना चाहिए।
अपने संबोधन में उन्होंने भारतीय न्यायशास्त्र के ‘पुनः स्वदेशीकरण’ (re-indigenization) की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, “भारत की विशिष्ट सामाजिक संरचना, संस्कृति और चरित्र के अनुरूप कानूनी सिद्धांतों की ओर लौटना ज़रूरी है। हमें अपने कानूनी विरासत की पूरी व्यापकता को फिर से खोजकर देश की मौजूदा चुनौतियों का समाधान करना होगा।”
तुषार मेहता का यह संबोधन न्यायपालिका की भूमिका और भविष्य की दिशा को लेकर एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो भारतीय संदर्भ में न्याय और संवैधानिक मूल्यों की पुनर्परिभाषा की आवश्यकता को रेखांकित करता है।