इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2010 के हत्या के प्रयास मामले में समाजवादी पार्टी के बागी विधायक अभय सिंह को साक्ष्यों के अभाव और विरोधाभास के चलते बरी कर दिया। शाम 4:10 बजे न्यायमूर्ति राजन राय ने फैसला सुनाया, जिससे लंबे समय से चल रहे कानूनी विवाद का समापन हुआ।
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित करने में नाकाम रहा। प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में घटना के समय और हमलावरों की संख्या को लेकर विसंगतियां पाई गईं। कथित हथियारों की स्पष्ट पहचान नहीं की गई थी और शिकायतकर्ता विकास सिंह के बयान भी कई बार बदले, जिससे आरोपों की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह उत्पन्न हुआ।
अपने फैसले में न्यायमूर्ति राय ने कहा, “इन विरोधाभासों और ठोस सबूतों के अभाव में अभियुक्तों पर आरोप सिद्ध नहीं होते।” इसी आधार पर अदालत ने सभी आरोपियों को बरी करते हुए अपील खारिज कर दी।

इस मामले ने दिसंबर 2024 में तब जटिल मोड़ लिया था जब हाईकोर्ट के दो अलग-अलग जजों के फैसले आपस में विरोधाभासी रहे। जहां न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी ने अभय सिंह समेत चार अन्य को तीन वर्ष के कारावास की सजा सुनाई थी, वहीं न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। इन विरोधी फैसलों के कारण मामले को मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली के पास भेजा गया था, जिन्होंने अंतिम निर्णय के लिए मामला न्यायमूर्ति राजन राय को सौंपा था।
यह मामला वर्ष 2010 का है जब अयोध्या जिले के महाराजगंज निवासी विकास सिंह ने आरोप लगाया था कि अभय सिंह और उनके साथियों ने उनकी गाड़ी पर गोलीबारी की थी। हालांकि, वर्ष 2023 में विशेष सांसद/विधायक अदालत ने अभय सिंह को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। इसके बाद विकास सिंह ने हाईकोर्ट में फैसले को चुनौती दी थी, जिससे यह कानूनी लड़ाई और लंबी खिंच गई।
फैसले के बाद विधायक अभय सिंह और उनके साथियों को अब औपचारिक तौर पर सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया है।