छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में छत्तीसगढ़ मोटर यान नियम, 1994 के नियम 76-B(16) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, जो 12 वर्ष से अधिक पुरानी स्कूल बसों के संचालन पर प्रतिबंध लगाता है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा, न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की पूर्णपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए राज्य को स्कूल परिवहन सुरक्षा को नियंत्रित करने का अधिकार दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
घनश्याम दास रूंगटा फाउंडेशन (WPC No. 3191/2022), GDR एजुकेशनल सोसाइटी (WPC No. 3210/2022), और जन प्रगति एजुकेशन सोसाइटी (WPC No. 3369/2022) ने नियम 76-B(16) की वैधता को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इन याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह नियम मोटर यान अधिनियम, 1988 के तहत राज्य के नियामक अधिकारों से परे है।
याचिकाकर्ताओं के वकील सिद्धार्थ शुक्ला ने दलील दी कि अधिनियम की धारा 96 राज्य सरकार को स्कूल बसों की अधिकतम आयु निर्धारित करने का अधिकार नहीं देती। उन्होंने पहले के एक खंडपीठ के निर्णय (डॉ. संदीप जैन बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, WPC No. 2004/2017) का हवाला दिया, जिसमें स्टेज कैरिज वाहनों की अधिकतम उम्र तय करने वाले एक समान नियम को अवैध करार दिया गया था।
कानूनी मुद्दे और दलीलें
याचिकाकर्ताओं ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि मोटर यान अधिनियम, 1988 की धारा 41(7) के अनुसार, किसी वाहन का पंजीकरण 15 वर्षों तक वैध होता है। ऐसे में, 12 साल पुरानी स्कूल बसों पर प्रतिबंध लगाना इस अधिनियम के विपरीत है। उन्होंने इसे अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में भी पेश किया।
हालांकि, राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत और सरकारी अधिवक्ता राहुल तामस्कर ने दलील दी कि स्कूल बसों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की प्रधान जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि अधिनियम की धारा 96(2)(xxxiii) राज्य को इस तरह के प्रतिबंध लगाने की शक्ति देती है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए राज्य ने सुभाष चंद्र बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [(1980) 2 SCC 324] और एस.के. भाटिया बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [AIR 1983 SC 988] मामलों का उल्लेख किया, जिनमें सार्वजनिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए परिवहन वाहनों की उम्र पर प्रतिबंध को वैध ठहराया गया था।
कोर्ट का निर्णय और टिप्पणियाँ
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की चुनौती को खारिज करते हुए कहा कि नियम 76-B(16) पूरी तरह से राज्य के विधायी अधिकार क्षेत्र के भीतर है। न्यायालय ने यह भी माना कि डॉ. संदीप जैन मामले में दिया गया पूर्व निर्णय सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी फैसलों पर विचार किए बिना सुनाया गया था, इसलिए वह इस मामले में प्रभावी नहीं हो सकता।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले सुभाष चंद्र मामले को उद्धृत करते हुए अदालत ने कहा:
“जितना पुराना मॉडल होगा, उसमें नवीनतम सुरक्षा उपायों की संभावना उतनी ही कम होगी। प्राचीन वाहन संग्रहालयों में प्रदर्शित करने योग्य हो सकते हैं, लेकिन हमारे उपेक्षित राजमार्गों पर ये चलते-फिरते खतरे साबित होते हैं।”
इसके अलावा, अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की बाध्यकारी प्रकृति को दोहराया:
“बाध्यकारी नजीर का सिद्धांत हमारी न्यायिक प्रणाली के प्रशासन में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह न्यायिक निर्णयों में निश्चितता और स्थिरता को बढ़ावा देता है।”
