हाईकोर्ट के जज का इस्तीफा पेंशन लाभों के लिए सेवानिवृत्ति के समान: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि किसी हाईकोर्ट के जज का इस्तीफा पेंशन लाभों के संदर्भ में सेवानिवृत्ति के समान माना जाएगा। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और जस्टिस भारती डांगरे की पीठ ने इस फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट रजिस्ट्रार के उस निर्णय को रद्द कर दिया, जिसमें पूर्व जज पुष्पा गणेडीवाला को पेंशन देने से इनकार कर दिया गया था। गणेडीवाला ने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता पुष्पा पत्नी वीरेंद्र गणेडीवाला को 26 अक्टूबर 2007 को जिला जज के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में, उन्हें 13 फरवरी 2019 को बॉम्बे हाईकोर्ट में अतिरिक्त जज के रूप में पदोन्नत किया गया और दो साल के लिए उनका कार्यकाल निर्धारित किया गया। केंद्र सरकार ने उनके कार्यकाल को एक साल के लिए बढ़ाकर 12 फरवरी 2022 तक कर दिया था। हालांकि, उन्होंने 11 फरवरी 2022 को इस्तीफा दे दिया, जिसे बाद में कानून और न्याय मंत्रालय ने 14 मार्च 2023 को स्वीकार और अधिसूचित किया।

इस्तीफे के बाद, गणेडीवाला ने पेंशन लाभों के लिए आवेदन किया, जिसमें उन्होंने अपनी जिला जज और हाईकोर्ट जज के रूप में कुल 14 वर्षों से अधिक की सेवा को आधार बनाया। हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (ओरिजिनल साइड) ने कानून और न्याय मंत्रालय, प्रिंसिपल अकाउंटेंट जनरल और महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल की राय के आधार पर उनकी पेंशन याचिका खारिज कर दी। रजिस्ट्रार ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट जज (वेतन और सेवा शर्तें) अधिनियम, 1954 (1954 अधिनियम) के तहत इस्तीफा सेवानिवृत्ति के रूप में योग्य नहीं है।

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कानूनी मुद्दे और दलीलें

सीनियर एडवोकेट सुनील मनोहर और निखिल साखरदांडे, जो याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए, ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट का जज एक संवैधानिक पदधारी होता है और उसकी पेंशन का निर्धारण संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार किया जाना चाहिए, न कि केवल सेवा नियमों के आधार पर। उन्होंने कहा कि 1954 अधिनियम की धारा 14 और 15 के तहत “सेवानिवृत्ति” की परिभाषा इतनी व्यापक है कि उसमें इस्तीफा भी शामिल किया जा सकता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि इस्तीफा देने वाले जजों को पेंशन से वंचित करना भेदभावपूर्ण है।

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याचिकाकर्ता ने सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी भी प्रस्तुत की, जिससे पता चला कि बॉम्बे हाईकोर्ट के पांच पूर्व जज, जिन्होंने इस्तीफा दिया था, उन्हें पेंशन दी जा रही थी। उन्होंने इस आधार पर दलील दी कि उन्हें पेंशन न देना मनमाना और अन्यायपूर्ण है।

दूसरी ओर, बॉम्बे हाईकोर्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वीरेंद्र तुलजापुरकर ने तर्क दिया कि इस्तीफा और सेवानिवृत्ति दो अलग-अलग अवधारणाएं हैं। उन्होंने कहा कि पेंशन लाभ केवल उन जजों को मिलना चाहिए, जो परंपरागत रूप से सेवा निवृत्त होते हैं—या तो अधिवर्षिता (superannuation) के कारण या स्वास्थ्य संबंधी कारणों से। राज्य सरकार ने भी एडवोकेट जनरल की राय को अपनाते हुए यही रुख अपनाया कि इस्तीफा देने से पेंशन का अधिकार समाप्त हो जाता है।

कोर्ट का फैसला और मुख्य टिप्पणियां

डिवीजन बेंच ने संवैधानिक प्रावधानों और पूर्ववर्ती मामलों का गहन विश्लेषण करने के बाद याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा:

  • 1954 अधिनियम के तहत “सेवानिवृत्ति” को सीमित रूप में परिभाषित नहीं किया गया है, और इसका व्यापक अर्थ लगाया जाना चाहिए, जिसमें इस्तीफा भी शामिल हो।
  • जज का इस्तीफा भी न्यायिक सेवा समाप्त करने का एक तरीका है, और इस आधार पर पेंशन से इनकार करना अन्यायपूर्ण है।
  • सरकार द्वारा यूको बैंक व अन्य बनाम सनवर मल (2004) 4 एससीसी 412 पर निर्भर करना गलत था, क्योंकि वह मामला सेवा नियमों से संबंधित था, जिसमें स्पष्ट रूप से इस्तीफे के कारण पूर्व सेवा समाप्त होने का प्रावधान था, जबकि 1954 अधिनियम में ऐसा कोई नियम नहीं है।
  • कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पांच अन्य पूर्व जजों को इस्तीफा देने के बावजूद पेंशन दी गई थी, जिससे प्रतिवादियों की स्थिति पर सवाल खड़े होते हैं।
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महत्वपूर्ण टिप्पणी:

“इस्तीफा, अधिवर्षिता या स्वास्थ्य कारणों से सेवानिवृत्ति की तरह, न्यायिक सेवा को समाप्त कर देता है। केवल इस्तीफे के आधार पर पेंशन लाभों से इनकार करना हाईकोर्ट जज (वेतन और सेवा शर्तें) अधिनियम, 1954 और समानता के सिद्धांतों के विरुद्ध होगा।”

कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट रजिस्ट्रार के 2 नवंबर 2022 के फैसले को रद्द करते हुए प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता को 14 फरवरी 2022 से पेंशन लाभ प्रदान करें, जिसमें 6% वार्षिक ब्याज भी शामिल हो, जो दो महीने के भीतर देय होगा।

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