दिल्ली हाईकोर्ट ने मोहम्मद तारिक रहमान के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया, जिन्हें इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय (IGI) एयरपोर्ट पर बैगेज स्क्रीनिंग के दौरान एक जिंदा कारतूस के साथ पकड़ा गया था। अदालत ने फैसला सुनाया कि कारतूस का उनका कब्ज़ा अनजाने में हुआ और यह आर्म्स एक्ट, 1959 के तहत “सचेत कब्जे” (conscious possession) की श्रेणी में नहीं आता।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 29 मार्च 2021 की घटना से जुड़ा है, जब IGI एयरपोर्ट पर सुरक्षा अधिकारियों ने रहमान के बैग की स्क्रीनिंग के दौरान एक संदिग्ध वस्तु पाई। तलाशी लेने पर बैग से एक जिंदा कारतूस बरामद हुआ। चूंकि वह इसके लिए कोई वैध अनुमति पत्र नहीं दिखा सके, पुलिस ने IGI एयरपोर्ट थाने में उनके खिलाफ एफआईआर (संख्या 106/2021) दर्ज कर दी, जो आर्म्स एक्ट, 1959 की धारा 25 के तहत थी।
रहमान, जो दक्षिण अफ्रीका के डबलिन में छात्र हैं, ने दावा किया कि उन्हें कारतूस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने बताया कि उनके हॉस्टल के साथी अक्सर बैग उधार लेते थे और शूटिंग रेंज पर जाते थे, संभवतः किसी ने गलती से बैग में कारतूस छोड़ दिया होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी जब तक कि एयरपोर्ट सुरक्षा ने इसे बरामद नहीं किया।

अदालत में विचाराधीन कानूनी मुद्दे
मामले में मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या यह कारतूस रखने का मामला सचेत कब्जे (conscious possession) की श्रेणी में आता है, जो आर्म्स एक्ट के तहत अभियोजन के लिए आवश्यक होता है।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला की अध्यक्षता वाली पीठ ने निम्नलिखित मामलों का हवाला दिया:
- सोनम चौधरी बनाम राज्य (दिल्ली सरकार)
- मिताली सिंह बनाम NCT दिल्ली एवं अन्य
- संजय दत्त बनाम राज्य (CBI बॉम्बे, II क्राइम्स)
- राहुल ममगैन बनाम NCT दिल्ली एवं अन्य
अदालत ने देखा कि इन मामलों में भी एफआईआर रद्द कर दी गई थी, जब यह स्पष्ट हुआ कि कारतूस का कब्ज़ा संयोगवश हुआ था और इसमें कोई आपराधिक मंशा नहीं थी।
अदालत का फैसला
मामले के तथ्यों पर विचार करने के बाद, अदालत ने पाया कि रहमान के पास कारतूस की मौजूदगी को लेकर कोई जानकारी या इरादा नहीं था, इसलिए इसे सचेत कब्जे की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। आदेश में कहा गया:
“सचेत कब्जे के सिद्धांत के तहत केवल भौतिक कब्जा ही नहीं, बल्कि जागरूकता और इरादा भी आवश्यक है, जो इस मामले में स्थापित नहीं होता।”
इसके अलावा, अदालत ने पाया कि न तो इसमें कोई आपराधिक मंशा (mens rea) थी और न ही यह संकेत मिला कि कारतूस को किसी अवैध उद्देश्य के लिए रखा गया था। चूंकि कोई हथियार बरामद नहीं हुआ और रहमान का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि रहमान को अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए थी, जिससे यह स्थिति टल सकती थी। सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने उन पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया, जिसे दिल्ली पुलिस वेलफेयर फंड में जमा कराने का निर्देश दिया।