इलाहाबाद हाई कोर्ट ने झूठे बलात्कार और अन्य मामलों में बार-बार शिकायत दर्ज कराने पर महिला और वकील के खिलाफ CBI जांच के आदेश दिए

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में पूजा रावत नाम की महिला और उनके वकील अधिवक्ता परमानंद गुप्ता द्वारा कई व्यक्तियों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज कराने के आरोपों की CBI जांच के आदेश दिए हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति बृज राज सिंह की खंडपीठ ने क्रिमिनल मिसलेनियस रिट पिटीशन नंबर 1793/2025 की सुनवाई के दौरान दिया, जिसे याचिकाकर्ता अरविंद यादव और अन्य द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ दायर किया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं ने 30 जनवरी 2025 को लखनऊ के विभूति खंड पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी (FIR) संख्या 40/2025 के खिलाफ अदालत से राहत मांगी थी। यह प्राथमिकी भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 और आईटी एक्ट, 2008 की धारा 66D के तहत दर्ज की गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि पूजा रावत पहले भी कई झूठे मुकदमे दर्ज कर चुकी हैं और वह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करके लोगों को परेशान करने और उनसे वसूली करने का प्रयास कर रही हैं।

READ ALSO  दिल्ली हाईकोर्ट ने राहुल गांधी की नागरिकता पर याचिका की समीक्षा की, सीबीआई जांच जारी है

मामले में मुख्य कानूनी प्रश्न

अदालत ने निम्नलिखित कानूनी मुद्दों पर विचार किया:

Play button
  1. क्या बार-बार आपराधिक मुकदमे दर्ज कराना कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग को दर्शाता है?
  2. क्या हर मुकदमे में एक ही वकील की संलिप्तता यह संकेत देती है कि न्यायिक प्रक्रिया का सुनियोजित दुरुपयोग किया जा रहा है?
  3. क्या इस तरह के आरोपों की सच्चाई जानने और निर्दोष व्यक्तियों को गलत तरीके से फंसाने से रोकने के लिए CBI जांच आवश्यक है?
READ ALSO  बीएसएफ से निलंबित कॉन्स्टेबल की अर्जी सुप्रीम कोर्ट में खारिज

कोर्ट के अवलोकन और निर्णय

अदालत ने जब रिकॉर्ड की समीक्षा की, तो पाया कि पूजा रावत ने पहले भी 11 से अधिक आपराधिक शिकायतें दर्ज कराई हैं, जिनमें से सभी अलग-अलग व्यक्तियों के खिलाफ एक जैसी थीं। साथ ही, उनके वकील अधिवक्ता परमानंद गुप्ता भी इस तरह के कई मामलों में शामिल पाए गए।

कोर्ट ने टिप्पणी की:

“एक ही प्रकृति के कई आपराधिक मामलों को अलग-अलग व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज कराना न्याय प्रणाली के दुरुपयोग का गंभीर संकेत देता है। यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग प्रतीत होता है, जिसके लिए गहन जांच आवश्यक है।”

इन निष्कर्षों के आधार पर, हाई कोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को जांच करने और 10 अप्रैल 2025 तक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य नहीं मिलते हैं, तो उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

READ ALSO  गैंगस्टर-राजनेता मुख्तार अंसारी बाराबंकी अदालत में पेश हुए
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles