इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक विवादित फैसले में बलात्कार के आरोपी 26 वर्षीय युवक को जमानत दे दी है, लेकिन इसके लिए शर्त रखी है कि वह अपनी 23 वर्षीय पीड़िता से रिहाई के तीन महीने के भीतर शादी करेगा। न्यायमूर्ति कृष्ण पहल द्वारा दिए गए इस फैसले ने न्याय और पीड़िता के अधिकारों पर व्यापक बहस छेड़ दी है।
राजस्थान के सीकर जिले का रहने वाला आरोपी पुलिस भर्ती परीक्षा की कोचिंग क्लास में पीड़िता से मिला था। मई 2024 में दर्ज एफआईआर के अनुसार, पीड़िता के साथ फरवरी से कई बार यौन शोषण किया गया था। आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत केस दर्ज किया गया था। इसके अलावा, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) के तहत भी आरोपी पर मामला दर्ज किया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने पीड़िता की अंतरंग तस्वीरें ऑनलाइन साझा की थीं।
हाईकोर्ट की सुनवाई के दौरान यह सामने आया कि आरोपी ने यूपी पुलिस विभाग में नौकरी दिलाने का झांसा देकर पीड़िता को शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया। इतना ही नहीं, उसने कथित तौर पर पीड़िता को ₹9 लाख रुपये भी वसूले और धमकी दी कि अगर वह पैसे नहीं देगी तो उसके अंतरंग वीडियो सार्वजनिक कर देगा।

न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने अपने आदेश में कहा, “संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को केवल इसलिए नहीं छीना जा सकता क्योंकि कोई व्यक्ति किसी अपराध का आरोपी है, जब तक कि दोष संदेह से परे सिद्ध न हो जाए।” इसी तर्क के आधार पर अदालत ने आरोपी को जमानत दी, लेकिन शर्त रखी कि वह पीड़िता से शादी करेगा और सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेगा।
इस फैसले ने कई कानूनी और सामाजिक सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की शर्तें पीड़िता की स्वायत्तता (autonomy) और कानूनी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती हैं। वहीं, पीड़िता पर शादी करने का दबाव बन सकता है, जिससे उसे न्याय मिलने की संभावनाएं कमजोर हो सकती हैं।
यह पहली बार नहीं है जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस तरह की जमानत शर्त रखी हो। अक्टूबर 2023 में भी अदालत ने एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी को इस शर्त पर जमानत दी थी कि वह पीड़िता से शादी करेगा और उसके नवजात बच्चे की जिम्मेदारी उठाएगा। अदालत ने यह भी आदेश दिया था कि आरोपी बच्चे के नाम पर ₹2 लाख की सावधि जमा (फिक्स्ड डिपॉजिट) कराएगा।