इलाहाबाद हाई कोर्ट में 81 न्यायिक पद रिक्त, 11.5 लाख लंबित मामलों पर PIL में त्वरित कार्रवाई की मांग

इलाहाबाद हाई कोर्ट इस समय गंभीर न्यायिक संकट से जूझ रहा है, जहां केवल 50% से भी कम स्वीकृत न्यायाधीश कार्यरत हैं। अदालत में 81 न्यायिक पद रिक्त हैं, और 11.55 लाख से अधिक मामले लंबित पड़े हैं। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है, जिसमें न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की गई है ताकि जल्द से जल्द न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी की जा सके और अदालत की स्वीकृत शक्ति 160 न्यायाधीशों तक बहाल की जा सके।

यह PIL वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश त्रिवेदी द्वारा याचिकाकर्ता के रूप में दाखिल की गई है, जिसे अधिवक्ताओं शाश्वत आनंद, सैयद अहमद फैजान और सौमित्र आनंद के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है तथा वरिष्ठ अधिवक्ता एस.एफ.ए. नक़वी द्वारा अंतिम रूप दिया गया है। इस याचिका पर सुनवाई 6 मार्च 2025 को मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की पीठ द्वारा की जाएगी।

याचिका में अदालत में न्यायाधीशों की भारी कमी को उजागर किया गया है, जिसमें तर्क दिया गया है कि प्रत्येक न्यायाधीश पर वर्तमान में 14,600 से अधिक लंबित मामलों का बोझ है, जिससे समय पर न्याय देना लगभग असंभव हो गया है। इसमें कहा गया है कि यह स्थिति अदालत की कार्यप्रणाली को पूरी तरह पंगु बना रही है और नागरिकों को न्याय तक पहुंच के मूलभूत अधिकार से वंचित कर रही है।

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संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर इस जनहित याचिका में न्यायिक नियुक्तियों के लिए निर्धारित प्रक्रिया (MoP) के तहत सख्त समय-सीमा लागू करने की मांग की गई है। इसमें उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को यह निर्देश देने की अपील की गई है कि वे किसी भी रिक्ति से कम से कम छह महीने पहले न्यायाधीशों के नाम की सिफारिश करें ताकि नियुक्तियों में अनावश्यक देरी न हो।

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याचिका में केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री के संसद में दिए गए बयान का भी हवाला दिया गया है, जिसमें स्वीकार किया गया था कि उच्च न्यायालय अक्सर इन समय-सीमाओं का पालन नहीं करते, जिससे संकट और गंभीर होता जा रहा है। 3 फरवरी 2023 को लोकसभा में पूछे गए अस्वीकृत प्रश्न संख्या 413 के उत्तर में यह स्वीकार किया गया था कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्तियों में प्रक्रियागत देरी और रिक्तियों की समस्या बनी हुई है। फरवरी 2023 तक अदालत में 160 स्वीकृत पदों में से केवल 96 पर ही न्यायाधीश कार्यरत थे और कई सिफारिशें विभिन्न चरणों में लंबित थीं।

याचिका में यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की रिक्तियों को लेकर कई बार गंभीर चिंता व्यक्त की है, लेकिन स्पष्ट निर्देशों के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया ठप पड़ी हुई है, जिससे संस्थागत संकट उत्पन्न हो गया है।

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इसके अतिरिक्त, PIL में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और उच्च न्यायालय प्रशासन से लंबित न्यायिक नियुक्तियों पर एक व्यापक स्थिति रिपोर्ट मांगी गई है। साथ ही, रिक्तियों, सिफारिशों और नियुक्तियों की रियल-टाइम सार्वजनिक डेटा प्रणाली बनाने की मांग की गई है ताकि अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।

देश के सबसे व्यस्त संवैधानिक न्यायालयों में से एक, इलाहाबाद हाई कोर्ट, उत्तर प्रदेश की 24 करोड़ से अधिक आबादी की न्यायिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। याचिका में चेतावनी दी गई है कि यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई, तो बढ़ता लंबित मामलों का बोझ न्याय को आम नागरिकों की पहुंच से बाहर कर देगा और न्यायपालिका में जनता का विश्वास कमजोर कर देगा।

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6 मार्च को होने वाली सुनवाई के साथ, कानूनी बिरादरी और वादकारी इस संवैधानिक संकट पर अदालत की प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

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