पावर ऑफ अटॉर्नी की सत्यता की जाँच वकील की जिम्मेदारी नहीं जब तक कोई उचित संदेह न हो: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में एडवोकेट इस्माइलभाई हतुभाई पटेल को आपराधिक कार्यवाही से मुक्त कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक पावर ऑफ अटॉर्नी की सत्यता पर कोई उचित संदेह न हो, तब तक किसी वकील को इसे सत्यापित करने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। शीर्ष अदालत ने ट्रायल कोर्ट और गुजरात हाईकोर्ट के फैसलों को रद्द करते हुए पटेल को सभी आरोपों से बरी कर दिया।

पृष्ठभूमि

यह मामला प्रथम सूचनाकर्ता अनिलकुमार पॉपटभाई सतोड़िया द्वारा दायर एक आपराधिक शिकायत से जुड़ा था, जिसमें कृषि किरायेदारी केस नंबर 57/2001 में धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए थे। आरोपों के अनुसार, एक मृत भू-स्वामी सोमिबेन मगनभाई की पहचान का गलत इस्तेमाल करते हुए जाली पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए ज़मीन के स्वामित्व का अवैध दावा किया गया।

आरोपियों में शामिल थे:

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  • रमेशभाई मगनभाई (अभियुक्त संख्या 1)
  • चिनुभाई हरिभाई गजेरा
  • एडवोकेट इस्माइलभाई हतुभाई पटेल

चार्जशीट में एडवोकेट इस्माइलभाई पटेल पर आरोप

चार्जशीट में एडवोकेट पटेल पर निम्नलिखित आरोप लगाए गए थे:

  1. उन्होंने अभियुक्त संख्या 1 रमेशभाई मगनभाई द्वारा प्रस्तुत पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर केस दायर किया।
  2. उन्होंने जाली पावर ऑफ अटॉर्नी का उपयोग कर केस आगे बढ़ाया।
  3. उन्होंने मृतक सोमिबेन मगनभाई की पहचान को गलत तरीके से प्रस्तुत करने में मदद की।
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पटेल के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिनमें शामिल हैं: धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी), 465 (जालसाजी), 467 (महत्वपूर्ण दस्तावेजों की जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (नकली दस्तावेज का उपयोग), 193 (झूठी गवाही), 120बी (आपराधिक साजिश) आदि।

अदालत में कार्यवाही और सुप्रीम कोर्ट का फैसला

पटेल ने ट्रायल कोर्ट में डिस्चार्ज आवेदन दायर किया था, जिसे खारिज कर दिया गया। उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोपों को रद्द करने की मांग की, लेकिन वह भी असफल रहे। इसके बाद उन्होंने क्रिमिनल अपील नंबर 661/2025 के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की और चार्जशीट, किरायेदारी केस के रिकॉर्ड और गवाहों के बयान की समीक्षा की।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य अवलोकन:

  • “यदि कोई व्यक्ति पावर ऑफ अटॉर्नी धारक के रूप में किसी वकील के पास आता है और मूल दस्तावेज दिखाकर केस दायर करने के लिए वकील को नियुक्त करता है, तो वकील से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह पावर ऑफ अटॉर्नी की सत्यता की जाँच करे, जब तक कि कोई उचित संदेह न हो।”
  • अदालत ने कहा कि पटेल केवल एक वकील के रूप में अपने मुवक्किल का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और इस बात का कोई प्रमाण नहीं था कि उन्हें किसी भी धोखाधड़ी की जानकारी थी।
  • “अभियुक्त ने किरायेदारी केस में स्वयं सोमिबेन मगनभाई की ओर से हस्ताक्षर नहीं किए। किरायेदारी आवेदन पर हस्ताक्षर पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा किए गए थे।”
  • अदालत ने पाया कि पटेल ने मृतक सोमिबेन मगनभाई के अंगूठे के निशान या हस्ताक्षर को प्रमाणित नहीं किया था। यह कार्य किसी अन्य व्यक्ति पी.आर. पटेल द्वारा किया गया था।
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अंतिम निर्णय

सभी तथ्यों की समीक्षा के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया:

“चार्जशीट में किए गए दावों को सही मानते हुए भी, यह स्पष्ट होता है कि अपीलकर्ता (इस्माइलभाई हतुभाई पटेल) के खिलाफ मुकदमा चलाने का कोई आधार नहीं है।”

इस आधार पर अदालत ने पटेल के खिलाफ सभी आरोपों को खारिज कर दिया और ट्रायल कोर्ट (31 अगस्त 2017) और गुजरात हाईकोर्ट (13 जून 2019) के फैसलों को रद्द कर दिया

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हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह राहत केवल एडवोकेट पटेल तक सीमित है और अन्य अभियुक्तों, जैसे रमेशभाई मगनभाई और अभियुक्त संख्या 5, की संलिप्तता पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है।

न्यायालय में पक्षकारों की ओर से प्रस्तुतियाँ:

  • अपीलकर्ता (इस्माइलभाई हतुभाई पटेल) की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता निखिल गोयल, एडवोकेट्स आशुतोष घड़े, आदित्य कोशरॉय, सिद्धि गुप्ता और नवीन गोयल।
  • उत्तरदायी पक्ष (गुजरात राज्य) की ओर से: अधिवक्ता रजत नायर, एओआर स्वाति घिल्डियाल, देवयानी भट्ट और ओजस्वा पाठक।

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