इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने हालिया फैसले में उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह सशस्त्र बलों के सेवारत और शहीद सैनिकों के परिवारों के कल्याण और शिकायत निवारण के लिए एक संगठित प्रणाली बनाए। यह फैसला शीतल चौधरी द्वारा दायर याचिका के जवाब में आया, जिसमें उन्होंने उत्पीड़न और राज्य प्रशासन की निष्क्रियता का आरोप लगाया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला, रिट – ए संख्या 19167/2024, शीतल चौधरी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य तीन के रूप में दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विनय कुमार ने पैरवी की, जबकि राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता अशोक मेहता, सी.एस.सी. मनोज कुमार सिंह और सुरेश कुमार मौर्य ने पक्ष रखा।
शीतल चौधरी के पति, सूबेदार हमवीर सिंह, 20वीं बटालियन, राजपूताना रायफल्स में तैनात हैं और वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पास एक संवेदनशील क्षेत्र में तैनात हैं। याचिकाकर्ता का आरोप था कि उनके पति की अनुपस्थिति के कारण उन्हें विशेष रूप से एक शिक्षक मित्र द्वारा उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उन्होंने स्थानीय प्रशासन को कई शिकायतें भेजीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई, यहां तक कि उनके पति के कमांडिंग ऑफिसर, कर्नल आनंद ए. शिराली द्वारा भेजे गए पत्र को भी नजरअंदाज कर दिया गया।
न्यायालय द्वारा विचार किए गए प्रमुख कानूनी मुद्दे
इस याचिका ने एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक कानून प्रश्न उठाया कि क्या राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह सशस्त्र बलों के परिवारों का समर्थन करे, जो सैन्य सेवा के कारण कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति अजय भानोट ने निम्नलिखित कानूनी मुद्दों पर विचार किया:
- रक्षा कर्मियों के परिवारों के प्रति राज्य की जिम्मेदारी – क्या सरकार की यह संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी है कि वह सशस्त्र बलों के सेवारत और शहीद सैनिकों के परिवारों की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करे?
- प्रशासनिक निष्क्रियता और शिकायत निवारण तंत्र की विफलता – राज्य प्रशासन द्वारा शिकायतों पर ध्यान न देना और शिकायत निवारण के लिए कोई संगठित व्यवस्था न होना।
- एक उच्च-स्तरीय समिति की कानूनी आवश्यकता – क्या राज्य सरकार को एक स्थायी व्यवस्था स्थापित करनी चाहिए जो ऐसे मामलों को सुनवाई और समाधान प्रदान करे?
न्यायालय की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति अजय भानोट ने अपने कठोर निर्णय में सैनिकों के परिवारों के प्रति राज्य और समाज की जिम्मेदारी को स्पष्ट करते हुए कहा:
“राज्य द्वारा सशस्त्र बलों के प्रति किया गया वादा अटूट है। राज्य अधिकारियों का कर्तव्य है कि वे इस वादे को पूरा करें। यह आश्वासन उन सैनिकों के दिलों को मजबूत करना चाहिए, जो हमारे सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं।”
इसके अलावा, उन्होंने फील्ड मार्शल चेटवुड के आदर्शों को उद्धृत करते हुए कहा:
“देश की सुरक्षा, सम्मान और कल्याण पहले आता है। आपके अधीनस्थ सैनिकों का सम्मान और उनकी भलाई उसके बाद आती है। आपकी व्यक्तिगत सुविधा और सुरक्षा सबसे अंत में आती है।”
अदालत ने यह भी कहा कि राज्य प्रशासन द्वारा कमांडिंग ऑफिसर के पत्र की अनदेखी करना एक गंभीर प्रशासनिक विफलता है, जो न केवल सैनिकों के परिवारों को प्रभावित करता है बल्कि सेना के मनोबल पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश
अपने फैसले में, उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
- राज्य स्तर पर एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया जाए, जिसमें वरिष्ठ राज्य अधिकारियों और सैन्य प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए, ताकि सशस्त्र बलों के परिवारों की समस्याओं का समाधान किया जा सके।
- जिला स्तर पर शिकायत निवारण समितियों की स्थापना की जाए, जिसकी अध्यक्षता जिलाधिकारी करेंगे, और इसमें स्थानीय सैन्य अधिकारियों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे, ताकि शिकायतों का त्वरित समाधान किया जा सके।
- शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई की जाए – किसी भी कमांडिंग ऑफिसर द्वारा भेजे गए पत्रों पर तुरंत संज्ञान लिया जाए और संबंधित अधिकारियों को जवाबदेह बनाया जाए।
- एक सख्त निगरानी प्रणाली विकसित की जाए – ताकि प्रशासनिक लापरवाही को रोका जा सके और भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
इसके अतिरिक्त, अदालत ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और सेंट्रल कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (GoC-in-C) को निर्देश दिया कि वे 10 दिनों के भीतर एक बैठक करके इन निर्देशों को लागू करें।
राज्य सरकार की प्रतिक्रिया
इस फैसले के जवाब में, अतिरिक्त महाधिवक्ता अशोक मेहता ने न्यायालय को आश्वस्त किया कि राज्य सरकार पूरी तरह से एक संगठित कल्याण प्रणाली के गठन का समर्थन करती है और इसे लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है।
सरकार ने 17 जनवरी 2025 को एक सरकारी आदेश (Government Order) जारी किया, जिसके तहत एक हाई पावर्ड स्टेट लेवल कमेटी का गठन किया गया। इस समिति की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव करेंगे और इसमें वरिष्ठ सैन्य अधिकारी भी शामिल होंगे।
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