दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि एजेंसियों के बीच जांच का स्थानांतरण केवल दुर्लभ और असाधारण परिस्थितियों में ही होता है, जो पुलिस के मनोबल को बनाए रखने के महत्व को रेखांकित करता है। यह टिप्पणी तब आई जब न्यायालय ने धोखाधड़ी के मामले की जांच को दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा से सीबीआई या विशेष प्रकोष्ठ को स्थानांतरित करने की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने इस बात पर जोर दिया कि जांच अधिकारी के खिलाफ केवल आरोपों के आधार पर इस तरह के स्थानांतरण की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि पर्याप्त सबूत आरोपी के साथ मिलीभगत का संकेत न दें। न्यायमूर्ति प्रसाद ने 6 फरवरी को अपने फैसले में कहा, “जांच केवल उच्च राज्य अधिकारियों से जुड़े मामलों में या जब पर्याप्त सामग्री शामिल अधिकारियों की ईमानदारी पर सवाल उठाती है, तब स्थानांतरित की जाती है।”
याचिकाएँ आरोपों से उठीं कि घर खरीदने वालों और निवेशकों से प्राप्त धन को अनुचित तरीके से डायवर्ट किया गया था, जिसमें आर्थिक अपराध शाखा ने गबन किए गए धन का पता लगाने के लिए विस्तृत जांच की। याचिकाकर्ताओं ने मौजूदा जांच में अपर्याप्तता का दावा करते हुए मामले की निगरानी विशेष जांच दल (एसआईटी) या उच्च अधिकारी से करवाने की मांग की थी।
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हालांकि, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि चल रही जांच में निष्पक्षता, ईमानदारी और गहनता के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कड़े मानदंड पूरे किए गए हैं। न्यायाधीश ने कहा, “जांच एजेंसी ने अपनी कार्यवाही में परिश्रम और गहनता दिखाई है, और ऐसा कोई सबूत नहीं है जो किसी लापरवाही भरे दृष्टिकोण का संकेत दे।”
अदालत ने शिकायतकर्ताओं के दबाव के कारण पीड़ित होने की याचिकाकर्ता की चिंताओं को भी संबोधित किया, यह देखते हुए कि शिकायतकर्ता मुख्य रूप से कमजोर निवेशक और घर खरीदने वाले थे जिन्होंने आरोपी की परियोजनाओं में भारी निवेश किया था। न्यायाधीश ने जांच दल द्वारा याचिकाकर्ताओं के प्रति किसी भी पक्षपात या अनुचित व्यवहार को खारिज कर दिया।