बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498-A के तहत अपराध को संज्ञान में लेने की सीमा अवधि (limitation period) उस समय से शुरू होगी जब अंतिम बार क्रूरता का कृत्य किया गया था। यह निर्णय न्यायमूर्ति विभा कणकनवाड़ी और न्यायमूर्ति रोहित डब्ल्यू जोशी की खंडपीठ ने मुसिन थेंगड़े बनाम महाराष्ट्र राज्य, आपराधिक आवेदन संख्या 887/2023 में सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला याचिकाकर्ता मुसिन बाबूलाल थेंगड़े के खिलाफ उनकी पत्नी रेशमा मुसिन थेंगड़े द्वारा लगाए गए घरेलू हिंसा और दहेज प्रताड़ना के आरोपों से जुड़ा था। इस शिकायत में आईपीसी की धारा 498-A (क्रूरता), 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना), 504 (अपमान करने का इरादा), 506 (आपराधिक धमकी) और धारा 34 के तहत आरोप लगाए गए थे।
एफआईआर 6 जनवरी 2023 को किल्लारी पुलिस स्टेशन, लातूर में दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि आवेदक ने शिकायतकर्ता को ₹2,00,000 की मांग को लेकर क्रूरता और प्रताड़ना दी।
कानूनी मुद्दे और दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील गौरव देशपांडे ने एफआईआर और आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए तर्क दिया कि शिकायत सीआरपीसी की धारा 468 के तहत निर्धारित सीमा अवधि के बाद दायर की गई थी। उन्होंने कहा कि क्रूरता का अंतिम आरोपित कृत्य 20 अक्टूबर 2019 को हुआ था, जबकि एफआईआर तीन साल बाद दायर की गई, जो समयसीमा से बाहर थी।
वहीं, राज्य की ओर से जी.ए. कुलकर्णी और शिकायतकर्ता की ओर से नमिता ठोले ने तर्क दिया कि धारा 498-A एक सतत अपराध (continuing offence) है, और इसलिए सीमा अवधि की गणना अंतिम गलत कृत्य से होनी चाहिए।
कोर्ट की टिप्पणी और निर्णय
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में पुनः पुष्टि की कि धारा 498-A एक सतत अपराध है, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक क्रूरता का कार्य सीमा अवधि को रीसेट कर देता है।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों, विशेष रूप से अरुण व्यास बनाम अनीता व्यास (1999) और रमेश व अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य (2005) का हवाला दिया, जिसमें यह निर्णय दिया गया था कि हर नए क्रूरता के कार्य के साथ एक नई सीमा अवधि शुरू होती है।
फैसले का प्रमुख अंश:
“आईपीसी की धारा 498-A के तहत अपराध एक सतत अपराध है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि सीमा अवधि अनिश्चित काल तक चलती रहेगी। सही व्याख्या यह होगी कि सीमा अवधि की गणना अंतिम क्रूरता के कृत्य से की जानी चाहिए।”
कोर्ट ने कोविड-19 महामारी के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई सीमा अवधि के विस्तार को भी ध्यान में रखते हुए कहा कि शिकायतकर्ता ने नवंबर 2022 में महिला शिकायत निवारण प्रकोष्ठ (Women Grievance Redressal Cell) का रुख किया था, और जनवरी 2023 में एफआईआर दर्ज की, जिससे देरी उचित मानी गई।
न्यायालय का निर्णय
- पति (याचिकाकर्ता नं. 1) की याचिका खारिज: हाईकोर्ट ने मुसिन बाबूलाल थेंगड़े के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को जारी रखने का आदेश दिया और कहा कि न्याय के हित में सीआरपीसी की धारा 473 के तहत सीमा अवधि बढ़ाई जा सकती है।
- ससुराल पक्ष को राहत (याचिकाकर्ता नं. 2 से 4): कोर्ट ने ससुर, देवर और ननद के खिलाफ एफआईआर रद्द कर दी, यह कहते हुए कि उन पर लगाए गए आरोप अस्पष्ट और अनिर्दिष्ट थे।
इस फैसले ने स्पष्ट कर दिया कि आईपीसी की धारा 498-A के तहत अपराध की सीमा अवधि अंतिम क्रूरता के कृत्य से शुरू होगी, जिससे पीड़ितों को न्याय प्राप्त करने में अधिक अवसर मिलेंगे।