वरिष्ठ नागरिकों को शांतिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मृतक पत्नी के घर से दामाद को बेदखल करने का आदेश दिया

वरिष्ठ नागरिकों के स्व-अर्जित संपत्तियों पर अधिकारों पर जोर देते हुए एक महत्वपूर्ण फैसले में, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बेदखली आदेश के खिलाफ दिलीप मरमत द्वारा दायर रिट अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उन्हें 30 दिनों के भीतर परिसर खाली करने का निर्देश दिया गया। अदालत ने कहा कि “वरिष्ठ नागरिकों को शांतिपूर्ण आय-प्रदान करने वाले निवास का अधिकार है” और बुजुर्ग प्रतिवादी के पक्ष में आदेश को बरकरार रखा।

मामले की पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता, दिलीप मरमत, प्रतिवादी संख्या 3 का दामाद, 2018 में अपनी पत्नी के निधन के बाद से बाद के घर में रह रहा था। मरमत ने दावा किया कि उसने घर के निर्माण में निवेश किया था और तर्क दिया कि वह संपत्ति के प्रतिकूल कब्जे में था। विवाद तब और बढ़ गया जब प्रतिवादी संख्या 3, जो कि सेवानिवृत्त बीएचईएल कर्मी है, ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत एक याचिका दायर की, जिसमें अपीलकर्ता को बेदखल करने की मांग की गई, जिसमें उत्पीड़न और भरण-पोषण न करने का आरोप लगाया गया।

Play button

उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) ने 2 मई, 2022 को मरमत को बेदखल करने का आदेश दिया था, जिसे कलेक्टर ने 1 अगस्त, 2022 को बरकरार रखा। हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के समक्ष इस निर्णय को बाद में चुनौती देने पर भी कोई सफलता नहीं मिली, जिसके कारण वर्तमान अपील खंडपीठ के समक्ष आई।

READ ALSO  मद्रास हाईकोर्ट ने मंदिरों की नक़ली वेबसाइट पर चिंता व्यक्त की

शामिल कानूनी मुद्दे

2007 के अधिनियम के तहत ‘बच्चों’ की परिभाषा:

अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि दामाद होने के नाते, वह अधिनियम की धारा 2(ए) के तहत ‘बच्चों’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है।

प्रतिवादी ने प्रतिवाद किया कि परिभाषा संपूर्ण नहीं है और इसमें निहित रूप से वह दामाद भी शामिल है जो मृतक बेटी के साथ रहता था।

2007 के अधिनियम की धारा 23 के तहत अधिकार:

अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उसने घर के निर्माण में योगदान दिया था और उसकी वित्तीय हिस्सेदारी थी।

READ ALSO  महिला जज से छेड़खानी व अभद्र टिप्पणी पर अधिवक्ता को चार साल की सजा

प्रतिवादी ने तर्क दिया कि यदि किसी वरिष्ठ नागरिक को संपत्ति की आवश्यकता है तो एक अनुमेय हस्तांतरण भी रद्द किया जा सकता है।

अनुमेय अधिभोगी की बेदखली:

अपीलकर्ता ने सुदेश छिकारा बनाम रामती देवी (2022 एससीसी ऑनलाइन एससी 1684) पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि हस्तांतरण विलेख के बिना बेदखली का आदेश नहीं दिया जा सकता।

न्यायालय ने उर्मिला दीक्षित बनाम सुनील शरण दीक्षित (2025 एससीसी ऑनलाइन एससी 2) का हवाला दिया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि न्यायाधिकरण वरिष्ठ नागरिकों की भलाई के लिए बेदखली का आदेश दे सकते हैं।

न्यायालय की टिप्पणियां और निर्णय

मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने रिट अपील को खारिज करते हुए फैसला सुनाया कि:

अपीलकर्ता का संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार नहीं था।

अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा करना है, उन्हें सुरक्षित और शांतिपूर्ण वातावरण सुनिश्चित करना है।

READ ALSO  छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने समाचार रिपोर्ट के आधार पर चिकित्सा लापरवाही के मामले में स्वतः संज्ञान लिया

‘बच्चों’ की परिभाषा इतनी व्यापक है कि इसमें मृतक बेटी के साथ रहने वाले दामाद जैसे आश्रितों को भी शामिल किया जा सकता है।

बेदखली आवश्यक थी क्योंकि प्रतिवादी को वित्तीय स्थिरता और अपनी लकवाग्रस्त पत्नी की देखभाल के लिए घर की आवश्यकता थी।

अदालत ने इस बात पर जोर दिया:

“वरिष्ठ नागरिक की शांतिपूर्ण निवास की आवश्यकता को केवल अनुमति प्राप्त अधिभोग दावों द्वारा खत्म नहीं किया जा सकता है।”

अंतिम आदेश

अदालत ने दिलीप मरमत को 30 दिनों के भीतर परिसर खाली करने का निर्देश दिया, ऐसा न करने पर स्थानीय एसएचओ को अपना सामान हटाने और संपत्ति प्रतिवादी नंबर 3 को सौंपने का निर्देश दिया।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles