छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 16 जनवरी, 2025 को दिए गए सीआरए संख्या 1467/2021 में 9 वर्षीय नाबालिग के अपहरण और यौन उत्पीड़न के लिए अजीत सिंह पोर्टे की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि पीड़ित की गवाही, पुष्ट साक्ष्य द्वारा समर्थित, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त थी, जबकि आजीवन कारावास की सजा को 20 वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया। श्री ऋषि राहुल सोनी ने अपीलकर्ता का प्रतिनिधित्व किया, जबकि श्री साकिब अहमद, पैनल वकील, राज्य की ओर से पेश हुए।
मामले की पृष्ठभूमि
घटना 1 मई, 2020 को हुई, जब पीड़ित, 9 वर्षीय लड़की, रायगढ़ जिले के अपने गाँव में एक प्राथमिक विद्यालय के पास खेल रही थी। पुलिस की पोशाक जैसी खाकी वर्दी पहने अपीलकर्ता ने पीड़िता से संपर्क किया और पुलिसकर्मी होने का दिखावा करते हुए उसे जबरन मोटरसाइकिल पर अगवा कर लिया।
पीड़िता को एक सुनसान खेत में ले जाया गया, जहाँ आरोपी ने उसका यौन उत्पीड़न किया। उस दिन बाद में पुलिस अधिकारियों ने उसे रोती हुई पीड़िता को अपनी मोटरसाइकिल पर ले जाते समय पकड़ लिया।
पीड़िता के पिता ने लिखित शिकायत दर्ज कराई और पुलिस ने तमनार पुलिस स्टेशन में अपराध संख्या 164/2020 के तहत प्राथमिकी दर्ज की। जांच के बाद, अपीलकर्ता पर आईपीसी की धारा 419 (प्रतिरूपण), 363 (अपहरण), 365 (गलत तरीके से कारावास) और पोक्सो अधिनियम की धारा 6 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत आरोप लगाए गए।
28 अगस्त, 2021 को, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, घरघोड़ा ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जिसे इस अपील में चुनौती दी गई थी।
कानूनी मुद्दे
1. पीड़िता की गवाही की विश्वसनीयता:
प्राथमिक मुद्दा यह था कि क्या नाबालिग पीड़िता की गवाही, सहायक साक्ष्य के साथ, दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त थी।
2. पीड़िता की आयु:
क्या पीड़िता की आयु, उसके जन्म प्रमाण पत्र द्वारा सत्यापित, POCSO अधिनियम की गंभीर धाराओं के तहत आरोपों को उचित ठहराती है।
3. पुष्टिकारक साक्ष्य की पर्याप्तता:
न्यायालय ने जांच की कि क्या गवाहों की गवाही और पुलिस कार्रवाई सहित पुष्टिकारक साक्ष्य, पीड़िता के बयान को मान्य करते हैं।
4. सजा की उपयुक्तता:
क्या आजीवन कारावास की सजा अपराध के अनुपात में थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
हाईकोर्ट ने साक्ष्यों की सावधानीपूर्वक समीक्षा करने के पश्चात निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
1. पीड़िता की गवाही:
न्यायालय ने पाया कि पीड़िता की गवाही सुसंगत और विश्वसनीय थी, जो विश्वसनीयता की आवश्यकताओं को पूरा करती थी। स्थापित कानूनी सिद्धांतों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा:
“पीड़िता की एकमात्र गवाही के आधार पर दोषसिद्धि हो सकती है, यदि वह विश्वास जगाती है और भौतिक विरोधाभासों से मुक्त है।”
2. पीड़िता की आयु:
पीड़िता की आयु की पुष्टि उसके जन्म प्रमाण पत्र के माध्यम से की गई, जिसमें उसकी जन्म तिथि 25 अक्टूबर, 2010 दर्शाई गई थी, जिससे अपराध के समय उसकी आयु 9 वर्ष हो गई।
3. चिकित्सा साक्ष्य:
चिकित्सा परीक्षण में शारीरिक चोट के लक्षण नहीं दिखे, लेकिन न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि POCSO अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न को स्थापित करने के लिए शारीरिक चोटें अनिवार्य नहीं हैं।
4. पुष्टि करने वाले साक्ष्य:
पीड़िता की गवाही की पुष्टि पुलिस द्वारा आरोपी को तत्काल पीड़िता के साथ पकड़ने के साथ-साथ पुलिस अधिकारियों और अन्य गवाहों के बयानों से भी हुई।
5. आरोपी की पहचान:
अदालत ने पाया कि पीड़िता ने अपने बयान के दौरान अपीलकर्ता की पहचान की थी और कोई वैकल्पिक कथन विश्वसनीय नहीं था।
अदालत का निर्णय
हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 419, 363, 365 और पोक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। हालांकि, इसने आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 20 साल के कठोर कारावास में बदल दिया, यह कहते हुए कि सजा किए गए अपराध के अनुपात में होनी चाहिए।
अदालत ने ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए जुर्माने को बरकरार रखा और जेल अधीक्षक और ट्रायल कोर्ट सहित संबंधित अधिकारियों को अपने आदेश का अनुपालन करने का निर्देश दिया।