भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अलीशा बेरी बनाम नीलम बेरी (स्थानांतरण याचिका (आपराधिक) संख्या 856/2024) के मामले में जोरदार ढंग से फैसला सुनाया कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 (डीवी अधिनियम) के तहत कार्यवाही में जमानती वारंट जारी करना कानूनी रूप से अनुचित है। न्यायमूर्ति संदीप मेहता की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि डीवी अधिनियम के मामलों की अर्ध-आपराधिक प्रकृति ऐसे बलपूर्वक उपायों की गारंटी नहीं देती है जब तक कि संरक्षण आदेश का उल्लंघन न किया जाए।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, सुश्री अलीशा बेरी, प्रतिवादी, सुश्री नीलम बेरी की बहू, ने डीवी अधिनियम के तहत दायर एक मामले को स्थानांतरित करने की मांग की। मामला मूल रूप से दिल्ली के तीस हजारी में महिला न्यायालय के समक्ष लंबित था, और याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत परिस्थितियों का हवाला देते हुए इसे लुधियाना, पंजाब में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया। सुश्री बेरी, जो बेरोजगार हैं और अपने सुनने में अक्षम नाबालिग बेटे की देखभाल कर रही हैं, ने तर्क दिया कि कार्यवाही के लिए दिल्ली में उपस्थित होना महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करता है।
उनकी वकील सुश्री असावरी सोढ़ी ने 6 फरवरी, 2024 को सुश्री बेरी के खिलाफ जमानती वारंट जारी करने के कारण होने वाली अनावश्यक कठिनाई पर जोर दिया, जबकि डीवी एक्ट की कार्यवाही की प्रकृति ऐसी ही थी।
प्रमुख कानूनी मुद्दे
1. डीवी एक्ट मामलों में जमानती वारंट की वैधता
अदालत ने इस बात पर विचार किया कि क्या डीवी एक्ट के तहत कार्यवाही में जमानती वारंट जारी किए जा सकते हैं, जो मुख्य रूप से अर्ध-आपराधिक और उपचारात्मक प्रकृति के हैं।
2. स्थानांतरण के लिए अधिकार क्षेत्र
याचिकाकर्ता ने लॉजिस्टिक चुनौतियों और इस तथ्य का हवाला देते हुए मामले को लुधियाना स्थानांतरित करने का तर्क दिया कि संबंधित तलाक की कार्यवाही पहले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा लुधियाना स्थानांतरित कर दी गई थी।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने स्पष्ट किया कि डी.वी. अधिनियम के तहत कार्यवाही में आमतौर पर दंडात्मक परिणाम नहीं होते हैं, जब तक कि सुरक्षा आदेश का उल्लंघन न हो। उन्होंने टिप्पणी की:
“डी.वी. अधिनियम के प्रावधानों के तहत दायर आवेदन में ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानती वारंट जारी करने का कोई औचित्य नहीं है। डी.वी. अधिनियम के तहत कार्यवाही अर्ध-आपराधिक कार्यवाही है, जिसका कोई दंडात्मक परिणाम नहीं होता है, सिवाय इसके कि सुरक्षा आदेश का उल्लंघन या उल्लंघन हो।”
न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने के महत्व पर प्रकाश डाला कि ऐसी कार्यवाही अनावश्यक रूप से दंडात्मक उपायों का सहारा लिए बिना पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा और उपचार पर केंद्रित रहे।
न्यायालय का निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय ने स्थानांतरण याचिका को अनुमति देते हुए तीस हजारी में महिला न्यायालय को बिना किसी देरी के लुधियाना में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में मामले के रिकॉर्ड स्थानांतरित करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने पक्षों के लिए प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए, यदि उपलब्ध हो, तो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं का उपयोग करने की भी सिफारिश की।
आदेश में शीघ्र अनुपालन के निर्देश दिए गए तथा इस बात पर बल दिया गया कि मामले से संबंधित लंबित आवेदनों का निपटारा कर दिया जाएगा।