केरल हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में केरल में नौ स्थानीय निकायों के लिए हाल ही में किए गए परिसीमन अभ्यास को अमान्य घोषित कर दिया है। न्यायमूर्ति मोहम्मद नियास सी.पी. द्वारा दिए गए इस निर्णय में केरल नगर पालिका (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, 2024 और केरल पंचायत राज (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, 2024 के तहत किए गए परिसीमन को लक्षित किया गया, जिसमें परिवर्तनों के लिए पुराने जनसंख्या डेटा के उपयोग को आधार बताया गया।
न्यायालय का यह निर्णय सरकार के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह के जवाब में आया, जिसने आठ नगर पालिकाओं और एक ग्राम पंचायत को प्रभावित किया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि परिवर्तन 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित थे और इस प्रकार वर्तमान जनसांख्यिकी को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं करते थे, जो संभावित रूप से इन क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व और संसाधनों के समान वितरण को बाधित कर सकते थे।
फैसले में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि स्थानीय निकायों का आखिरी बार 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर 2015 में गठन किया गया था। न्यायमूर्ति नियास ने कहा कि सरकार के पास अधिनियमों की धारा 6(2) के तहत स्थानीय निकायों में सीटों की संख्या में बदलाव करने का अधिकार है, लेकिन ऐसे संशोधनों को सबसे मौजूदा और प्रासंगिक जनसंख्या आंकड़ों के साथ संरेखित किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि धारा 6(3) में संशोधन, जिसने प्रभावी रूप से वार्ड की सीमाओं को बदल दिया और सीटों की संख्या बढ़ा दी, को 2015 में पहले से ही परिसीमित निकायों पर अनुचित तरीके से लागू किया गया था।