सुप्रीम कोर्ट ने शाही ईदगाह विवाद में मस्जिद समिति की याचिका को स्वीकार न किए जाने पर हिंदू पक्षकारों की दलीलें सुनीं

मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई में, हिंदू पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि मस्जिद समिति द्वारा दायर याचिका इस स्तर पर स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने की।

हिंदू पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता बरुण सिन्हा ने दलील दी कि मस्जिद समिति को 1 अगस्त को एकल न्यायाधीश द्वारा उनकी याचिका खारिज किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के बजाय इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ में जाना चाहिए था। एकल न्यायाधीश ने 15 संबंधित मामलों से जुड़े विवाद में शाही ईदगाह के “धार्मिक चरित्र” को निर्धारित करने की आवश्यकता पर फैसला सुनाया था।

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सिन्हा ने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट नियमों के अध्याय 8 के अनुसार, एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष विशेष अपील स्वीकार किए जाने योग्य होगी। उन्होंने तर्क दिया कि इस समय हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ के आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील स्वीकार्य नहीं है, इसलिए मस्जिद समिति को इसके बजाय अंतर-न्यायालय अपील दायर करनी चाहिए थी।

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उच्चतम न्यायालय की पीठ ने मामले की आगे की सुनवाई शीतकालीन अवकाश के बाद तक के लिए स्थगित कर दी। इस बीच, 29 नवंबर को मुख्य न्यायाधीश ने संकेत दिया था कि न्यायालय 9 दिसंबर को कानूनी स्थिति से संबंधित गहन दलीलें सुनेगा। उन्होंने प्रथम दृष्टया राय व्यक्त की कि हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ के आदेश के विरुद्ध अंतर-न्यायालय अपील की जा सकती है।

मस्जिद समिति ने तर्क दिया है कि हिंदू वादियों द्वारा दायर मुकदमे, जिसमें कथित तौर पर मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई मस्जिद को “हटाने” की मांग की गई है, उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के तहत स्वीकार्य नहीं हैं। यह अधिनियम आम तौर पर किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने पर रोक लगाता है, जैसा कि 15 अगस्त, 1947 को था, केवल अयोध्या विवाद के लिए एक अपवाद के साथ।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने अगस्त के फैसले में कहा कि अधिनियम “धार्मिक चरित्र” को परिभाषित नहीं करता है और कहा कि किसी स्थान पर एक साथ मंदिर और मस्जिद के दोहरे धार्मिक चरित्र नहीं हो सकते। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि स्वतंत्रता दिवस पर मौजूद धार्मिक चरित्र को दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य के माध्यम से निर्धारित किया जाना चाहिए।

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