सुप्रीम कोर्ट में एक अहम सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि प्रदान करने की प्रतिष्ठित प्रणाली को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह प्रणाली अब मज़ाक और ऑनलाइन जोक्स व मीम्स का विषय बन गई है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के सामने हुई, जो अधिवक्ता-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) से संबंधित झूठे दावों को रोकने के लिए दिशानिर्देशों पर विचार कर रही थी।
यह चर्चा एक अपहरण मामले में दोषी की सज़ा माफ करने की याचिका के संदर्भ में उठी, जिसमें झूठे दावों से जुड़े व्यापक मुद्दे सामने आए। एसजी ने दिल्ली की एक हालिया घटना का उल्लेख किया, जहां 70 अधिवक्ताओं को वरिष्ठ का दर्जा दिया गया। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया अब केवल उपाधियां बांटने का साधन बनती जा रही है, जबकि यह योग्यता आधारित मान्यता होनी चाहिए।
इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, जो 2017 में अपनी याचिका के माध्यम से वर्तमान प्रणाली की समर्थक रही हैं, ने सॉलिसिटर जनरल की राय का विरोध किया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णय में कोई बदलाव केवल पुनर्विचार याचिका के माध्यम से ही किया जा सकता है, न कि दो जजों की पीठ के सामने सामान्य प्रस्तुति से।
सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता-ऑन-रिकॉर्ड जयदीप पाटिल से जुड़े एक मामले पर भी ध्यान दिया, जिन्होंने एक याचिका पर हस्ताक्षर किए, लेकिन उसकी सामग्री से पूरी तरह अवगत नहीं थे। इस याचिका में याचिकाकर्ता की पिछली सज़ा की महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई गई थी। यह घटना छूट मामलों में बढ़ते झूठे दावों और AoR की ज़िम्मेदारियों पर सवाल उठाती है।
एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता एस. मुरलीधर ने प्रक्रियात्मक सुधारों का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि AoR को उनके प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों से निर्देश पत्र लेना अनिवार्य किया जाना चाहिए, ताकि ऐसी गलतियों से बचा जा सके। उन्होंने राज्य के वकीलों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों और सीधे निर्देशों की कमी का भी उल्लेख किया, जो अदालत में दायरियों में अनजाने में हुई गलतियों का कारण बन सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट आगामी सत्रों में इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तार से चर्चा करेगा, जिसमें AoR प्रणाली की सच्चाई, वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि प्रणाली की प्रक्रिया, और दोषी छूट का विशेष मामला शामिल है। ये चर्चाएं न्यायिक आचरण और ज़िम्मेदारी के उच्चतम मानकों को बनाए रखने के लिए कानूनी ढांचे को मजबूत और परिष्कृत करने पर केंद्रित होंगी।