एक ऐतिहासिक फैसले में, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दिसंबर 2017 में अपने घर में करंट लगने से मरने वाली श्रीमती पंचो बाई यादव के परिवार को ₹10.37 लाख का मुआवजा देने के फैसले को बरकरार रखा। न्यायालय ने छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड (CSPDCL) की अपील को खारिज कर दिया, जिससे बिजली प्रदाताओं के लिए सख्त दायित्व के सिद्धांतों को बल मिला।
यह मामला छत्तीसगढ़ के भाटापारा में 35 वर्षीय श्रीमती पंचो बाई की दुखद मौत से उपजा है। 13 दिसंबर, 2017 को नहाते समय, वह बोरवेल पंप से बिजली के संपर्क में आ गई, जिसके परिणामस्वरूप उसे करंट लग गया। उसके पति लाला राम यादव और उनके आठ बच्चे, जो एक दिहाड़ी मजदूर के रूप में उसकी आय पर निर्भर थे, को इस घटना के बाद गंभीर वित्तीय और भावनात्मक संकट का सामना करना पड़ा।
2016 में, परिवार ने विद्युत सुरक्षा मानकों को बनाए रखने में लापरवाही का आरोप लगाते हुए सीएसपीडीसीएल के खिलाफ एक सिविल मुकदमा (सं. 05बी/2016) दायर किया, जिसमें 11 लाख रुपये के मुआवजे की मांग की गई। ट्रायल कोर्ट ने आंशिक रूप से उनके पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें 9% वार्षिक ब्याज के साथ 10.37 लाख रुपये दिए गए। सीएसपीडीसीएल ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसमें तर्क दिया गया कि मृत्यु मृतक की अपनी लापरवाही के कारण हुई थी।
प्रमुख कानूनी मुद्दे
1. लापरवाही बनाम सख्त दायित्व: अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह घटना पीड़ित के घर में दोषपूर्ण आंतरिक वायरिंग और नमी के कारण हुई थी, जिससे वे जिम्मेदारी से मुक्त हो गए। अदालत ने मूल्यांकन किया कि क्या सीएसपीडीसीएल को अभी भी सख्त दायित्व के सिद्धांत के तहत जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
2. मुआवजे की पर्याप्तता: सीएसपीडीसीएल ने दावा किया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई राशि अत्यधिक थी, खासकर इसलिए क्योंकि मृतक की आय का दस्तावेजी सबूत नहीं था।
3. सीएसपीडीसीएल की जिम्मेदारी की सीमा: न्यायालय ने मूल्यांकन किया कि क्या सीएसपीडीसीएल ने विद्युत प्रणालियों की उचित स्थापना और अर्थिंग सुनिश्चित करने में अपनी जिम्मेदारी पूरी की है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति रजनी दुबे और न्यायमूर्ति संजय कुमार जायसवाल की खंडपीठ ने एम.पी. इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड बनाम शैल कुमारी और अन्य (2002) और नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी (2017) जैसे स्थापित कानूनी उदाहरणों पर भरोसा करते हुए सख्त दायित्व के सिद्धांतों को बरकरार रखा।
– सख्त दायित्व सिद्धांत: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि बिजली वितरण जैसी स्वाभाविक रूप से खतरनाक गतिविधियों में लगी संस्थाएँ लापरवाही की परवाह किए बिना होने वाले नुकसान के लिए उत्तरदायी हैं। फैसले में कहा गया, “मानव जीवन के लिए खतरनाक जोखिम वाली गतिविधि करने वाला व्यक्ति लापरवाही या लापरवाही की परवाह किए बिना चोट की भरपाई करने के लिए अपकृत्य कानून के तहत उत्तरदायी है।”
– सीएसपीडीसीएल की जिम्मेदारी पर: सीएसपीडीसीएल के कार्यकारी अभियंता ने जिरह के दौरान स्वीकार किया कि मीटर लगाने के समय उचित अर्थिंग सुनिश्चित न करना कंपनी की ओर से लापरवाही थी। इस स्वीकारोक्ति ने सीएसपीडीसीएल के बचाव को कमजोर कर दिया।
मुआवजा उचित माना गया
हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के ₹10.37 लाख के उचित मुआवजे के आकलन से सहमति जताई। यह गणना मृतक की ₹4,500 की काल्पनिक मासिक आय पर आधारित थी, जिसमें सरला वर्मा बनाम दिल्ली परिवहन निगम (2009) में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार 16 के गुणक का उपयोग किया गया था। मानसिक पीड़ा, संपत्ति की हानि और अंतिम संस्कार के खर्च के लिए अतिरिक्त राशि प्रदान की गई।
कोर्ट ने सीएसपीडीसीएल के इस दावे का समर्थन करने वाले साक्ष्य की अनुपस्थिति पर भी ध्यान दिया कि मृतक या उसके परिवार की लापरवाही ने घटना में योगदान दिया।
अंतिम निर्णय
सीएसपीडीसीएल की अपील खारिज कर दी गई, और कंपनी को वादी को संयुक्त रूप से और अलग-अलग मुआवजा देने का निर्देश दिया गया। न्यायालय ने कहा कि ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए उपयोगिता प्रदाताओं को सुरक्षा और देखभाल के उच्चतम मानकों को बनाए रखना चाहिए।
पक्ष और प्रतिनिधित्व
– अपीलकर्ता: सीएसपीडीसीएल, जिसका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता राजा शर्मा कर रहे हैं।
– प्रतिवादी: लाला राम यादव और उनके आठ बच्चे, जिनका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता बी.एल. साहू कर रहे हैं।
– प्रतिवादी संख्या 1: छत्तीसगढ़ राज्य, जिसका प्रतिनिधित्व पैनल वकील सच्चिदानंद यादव कर रहे हैं।