पुलिस की लापरवाही और अनुचित व्यवहार पर सख्त रुख अपनाते हुए, बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक गलत गिरफ्तारी के मामले में सुनवाई की और इस मुद्दे को उजागर किया कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ की गई शिकायतों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजुषा देशपांडे की खंडपीठ ने रत्ना वन्नम नामक महिला को ₹1 लाख का मुआवजा दिया, जिनके पति को सितंबर 2012 में गैरकानूनी रूप से गिरफ्तार किया गया था।
यह मामला मुंबई के सायन इलाके में स्थित एक चॉल में महिला के घर की मरम्मत को लेकर हुए विवाद से जुड़ा है। पड़ोसी ने इसे अवैध निर्माण बताते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि, यह शिकायत “गैर-संज्ञेय” (नॉन-कॉग्निजेबल) थी, जिसमें गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन पुलिस ने महिला के पति और निर्माण कार्य में लगे मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया। अदालत ने इसे अगस्त 2013 में दिए गए उस निर्देश का उल्लंघन बताया, जिसमें कहा गया था कि ऐसे मामलों में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्रारंभिक जांच नहीं की जानी चाहिए।
जस्टिस डांगरे और जस्टिस देशपांडे ने इस आदेश का पालन न होने पर निराशा व्यक्त की और इसे कानून प्रवर्तन के प्रति लापरवाही का चिंताजनक उदाहरण बताया। अदालत ने विशेष रूप से उस विभागीय जांच की आलोचना की, जिसमें संबंधित अधिकारी तुकाराम जाधव पर केवल ₹2,000 का मामूली जुर्माना लगाया गया, जबकि उनके गंभीर कदाचार को अनदेखा किया गया।
मामले को और गंभीर बनाते हुए यह भी सामने आया कि अधिकारी जाधव ने न केवल लोगों को गिरफ्तार किया, बल्कि उनकी रिहाई के लिए मनमाने ढंग से जुर्माने की मांग की। वन्नम के पति की रिहाई के लिए ₹12,000 की मांग की गई थी। अदालत ने इन कार्रवाइयों को निर्धारित कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन और शक्ति का दुरुपयोग करार दिया।