सजा से पहले हिरासत को बिना मुकदमे की सजा नहीं बनने देना चाहिए: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हत्या के मामले में आरोपी को जमानत दी

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में जोर दिया कि “सजा से पहले हिरासत को बिना मुकदमे की सजा नहीं बनने देना चाहिए।” यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने 2019 के एक सनसनीखेज हत्या के मामले में आरोपी जतिंदर सिंह को जमानत दी, जिसे एक महिला, कुलदीप कौर, को आग लगाने का दोषी ठहराया गया था। न्यायमूर्ति एन.एस. शेखावत ने लंबे समय से चल रही हिरासत और धीमी गति से चल रहे मुकदमे को देखते हुए सिंह को नियमित जमानत दी।

मामले की पृष्ठभूमि  

यह मामला एफआईआर संख्या 122 से संबंधित है, जो 21 अगस्त 2019 को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत पंजाब के थाना सिटी संगरूर में दर्ज किया गया था। एफआईआर कुलदीप कौर के मृत्यु-पूर्व बयान पर आधारित थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि जतिंदर सिंह ने उनके परिवार के सामने उनके रिश्ते का खुलासा करने की धमकी देकर उन्हें अपने घर आने पर मजबूर किया। वहां पहुँचने पर, सिंह ने कथित तौर पर उन पर पेट्रोल डाला और आग लगा दी।  

Video thumbnail

26 वर्षीय कुलदीप कौर ने न्यायिक मजिस्ट्रेट सिमरन सिंह के सामने बयान दर्ज करवाने के बाद दम तोड़ दिया। मेडिकल अधिकारियों द्वारा सत्यापित उनके बयान को अभियोजन पक्ष के मामले की मुख्य आधारशिला बनाया गया।  

READ ALSO  एनजीटी ने यूपीपीसीबी को साहिबाबाद पार्क को हुए नुकसान के लिए उपचारात्मक कार्रवाई करने को कहा

कानूनी मुद्दे और तर्क  

1. मृत्यु-पूर्व बयान की विश्वसनीयता:  

   बचाव पक्ष के वकील स्पर्श छिब्बर ने दलील दी कि कुलदीप कौर का मृत्यु-पूर्व बयान प्रेरित था और उनकी मां, पीडब्ल्यू1 परमजीत कौर, के प्रभाव में दिया गया था, जो उनके इलाज के दौरान उनके साथ थीं। उन्होंने यह भी कहा कि आरोपी के खिलाफ कोई पूर्व शत्रुता या अपराध का स्पष्ट उद्देश्य नहीं था।  

2. तेजी से न्याय पाने का अधिकार:  

   बचाव पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि सिंह 22 अगस्त 2019 से हिरासत में हैं और पांच वर्षों में अभियोजन पक्ष के 23 गवाहों में से केवल छह की ही गवाही हुई है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत तेजी से न्याय पाने के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा कि सिंह की लंबी हिरासत बिना दोषसिद्धि के दंडात्मक है।  

READ ALSO  शिक्षा का व्यवसायीकरण एक अभिशाप है- हाईकोर्ट ने बीसीआई को लॉ कॉलेजों का औचक निरीक्षण करने का निर्देश दिया

3. अभियोजन पक्ष का रुख:  

   डिप्टी एडवोकेट जनरल एम.एस. बाजवा ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि पर्याप्त आपत्तिजनक सबूत जुटाए गए हैं और आरोपी मुख्य दोषी है।  

कोर्ट के अवलोकन और निर्णय  

न्यायमूर्ति एन.एस. शेखावत ने कहा कि “व्यक्तिगत स्वतंत्रता हमारे संवैधानिक तंत्र का बहुत कीमती मूल्य है, जिसे आसानी से नकारा नहीं जा सकता।” उन्होंने कहा कि दोषसिद्धि से पहले की हिरासत को सजा के रूप में नहीं माना जा सकता, खासकर जब मुकदमे में अनुचित देरी हो।  

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा:  

– जमानत दंडात्मक नहीं है, बल्कि यह आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए है।  

– दोषी साबित होने से पहले आरोपी को सजा नहीं दी जानी चाहिए।  

READ ALSO  बैंक कर्ज चुकाने के लिए लुकआउट नोटिस का इस्तेमाल नहीं कर सकते: दिल्ली हाईकोर्ट

फैसले में न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर की ऐतिहासिक टिप्पणी का भी उल्लेख किया गया: “अगर सार्वजनिक न्याय को बढ़ावा देना है, तो स्वचालित हिरासत को कम करना होगा।”  

लंबी हिरासत, अधूरी सुनवाई, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने जमानत याचिका को कड़े नियमों के साथ स्वीकार किया:  

1. सिंह को महीने में दो बार पुलिस के पास रिपोर्ट करनी होगी।  

2. वह गवाहों को प्रभावित नहीं करेंगे और न ही न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालेंगे।  

3. सिंह को अपना पासपोर्ट जमा करना होगा और ट्रायल कोर्ट द्वारा मांगी गई जमानत राशि देनी होगी।  

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles