सुप्रीम कोर्ट ने आज इलाहाबाद हाई कोर्ट को समाजवादी पार्टी के नेता इरफ़ान सोलंकी की याचिका पर दस दिनों के भीतर फैसला सुनाने का निर्देश दिया, जिसमें उन्होंने आगजनी के मामले में अपनी दोषसिद्धि पर रोक लगाने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस भुइयां ने मामले में शामिल उच्च दांव को देखते हुए त्वरित समाधान की आवश्यकता पर बल दिया।
कानपुर के सीसामऊ से पूर्व विधायक इरफ़ान सोलंकी को उत्तर प्रदेश की एक स्थानीय अदालत ने एक महिला के घर में आग लगाने की घटना में शामिल होने के लिए दोषी पाया। दोषसिद्धि के बाद उन्हें सात साल की जेल की सजा सुनाई गई और इसके परिणामस्वरूप उन्हें अपने विधायक पद से अयोग्य घोषित कर दिया गया।
सोलंकी और उनके सह-आरोपियों, जिनमें उनके छोटे भाई रिजवान सोलंकी भी शामिल हैं, के खिलाफ आपराधिक आरोप 8 नवंबर, 2022 को दर्ज की गई एक घटना से उत्पन्न हुए हैं। नजीर फातिमा द्वारा दायर की गई शिकायत में सोलंकी भाइयों पर उनकी संपत्ति को जबरन हड़पने की कथित साजिश के तहत आगजनी का आरोप लगाया गया है। उनके खिलाफ लगाए गए विशिष्ट आरोपों में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत धारा 436 (आग से नुकसान), 506 (आपराधिक धमकी) और दंगा, जबरन वसूली और आपराधिक साजिश से संबंधित कई अन्य आरोप शामिल हैं।
सोलंकी की कानूनी टीम ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में उनकी दोषसिद्धि और दी गई सजा पर रोक लगाने की मांग की, ताकि आगे की अपील तक उनकी सजा के प्रवर्तन को निलंबित किया जा सके। हाई कोर्ट ने मामले को 6 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दिया था, जिसके बाद सोलंकी ने प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय से हस्तक्षेप करने की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट का यह त्वरित निर्देश एक महत्वपूर्ण समय पर आया है, क्योंकि कोई भी देरी सोलंकी के राजनीतिक करियर और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय का परिणाम सोलंकी की सक्रिय राजनीति में भाग लेने की क्षमता और उनकी तात्कालिक कानूनी स्थिति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगा।