हाल ही में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा रही है। इस याचिका में मतदान के दौरान इस्तेमाल की गई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की विश्वसनीयता पर गंभीर चिंता जताई गई है। याचिकाकर्ता प्रिया मिश्रा और विकास बंसल, जिनका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता नरेंद्र मिश्रा कर रहे हैं, ने ईवीएम की बैटरी क्षमता में उल्लेखनीय विसंगतियों का हवाला देते हुए 20 निर्वाचन क्षेत्रों में फिर से चुनाव कराने की मांग की है। उनका तर्क है कि इससे चुनाव के नतीजे प्रभावित हो सकते हैं।
याचिका के अनुसार, मतगणना प्रक्रिया के दौरान ईवीएम की बैटरी क्षमता में भिन्नता देखी गई; कुछ मशीनें 99% क्षमता पर काम कर रही थीं, जबकि अन्य 80% से कम थीं, जबकि कुछ 60-70% तक कम थीं। यह विसंगति विशेष रूप से एक ही मतदान केंद्रों में मौजूद थी, जिससे चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर संदेह पैदा हुआ।
यह मुद्दा सबसे पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को दी गई शिकायत के माध्यम से प्रकाश में आया, जिसमें कथित अनियमितताओं के बावजूद रिटर्निंग अधिकारियों द्वारा उपेक्षा और निष्क्रियता का आरोप लगाया गया था। याचिका में मतदाता मतदान के आंकड़ों में असामान्य उतार-चढ़ाव को रेखांकित किया गया है, जो 5 अक्टूबर, 2024 को 61.19% से बढ़कर दो दिन बाद 67.90% हो गया, जिससे चुनावी ईमानदारी पर और संदेह पैदा हो गया।
याचिकाकर्ता मांग कर रहे हैं कि ईसीआई इस मामले की गहन जांच करे, विशेष रूप से इस बात पर ध्यान केंद्रित करे कि ईवीएम को कैसे चार्ज किया गया और उन्हें अनधिकृत बाहरी ऊर्जा स्रोत से संचालित किए जाने की संभावना है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से प्रभावित निर्वाचन क्षेत्रों में फिर से चुनाव कराने और ईसीआई को फॉर्म 17सी के साथ सभी मतदाता मतदान डेटा जारी करने की आवश्यकता बताई है, जिसमें विस्तृत मतदान डेटा दर्ज किया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 32 का हवाला देकर, याचिकाकर्ता मौलिक अधिकारों को बनाए रखना चाहते हैं और यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि संभावित चुनावी कदाचार से लोकतांत्रिक प्रक्रिया से समझौता न हो। याचिका में निर्वाचन प्रणाली में जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए पारदर्शिता और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 तथा निर्वाचन संचालन नियम, 1961 के अनुपालन की आवश्यकता पर बल दिया गया है।