भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में, उत्तर प्रदेश पुलिस के सब-इंस्पेक्टर संजय कुमार द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपनी कर्तव्य पालन में घोर लापरवाही और उदासीनता के लिए उन पर लगाए गए सेंसर के खिलाफ चुनौती दी थी। अदालत ने इस प्रकार की लापरवाही को “अत्यंत निंदनीय” करार देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसलों को बरकरार रखा, जिन्होंने पहले अधिकारी को कोई राहत नहीं दी थी। न्यायमूर्ति पमिडीघंटम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता द्वारा दिए गए फैसले में यह पुष्टि की गई कि सार्वजनिक अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी जिम्मेदारियों का पालन करें और विशेष रूप से कानून प्रवर्तन भूमिकाओं में सतर्कता बरतें।
मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के हनुमानगंज थाना क्षेत्र में तैनात सब-इंस्पेक्टर संजय कुमार से संबंधित है, जिन पर उनके कर्तव्यों के निर्वहन में घोर लापरवाही, उदासीनता और स्वार्थपरता के आरोप में 16 नवंबर 2021 को उत्तर प्रदेश के गृह (पुलिस) विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव द्वारा सेंसर का आदेश जारी किया गया था।
सेंसर का यह आदेश 9 सितंबर 2021 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित एक समीक्षा बैठक के दौरान आया, जिसमें कानून प्रवर्तन जांच की प्रगति पर ध्यान केंद्रित किया गया था। समीक्षा के दौरान, संजय कुमार उन अधिकारियों में से एक के रूप में पहचाने गए, जिनकी जांच में काफी देरी हो रही थी। इसके परिणामस्वरूप, पुलिस महानिदेशक द्वारा तैयार की गई एक विस्तृत रिपोर्ट में तीन सब-इंस्पेक्टरों, जिनमें संजय कुमार भी शामिल थे, को जांच पूरी करने में खराब प्रदर्शन करने वाला बताया गया। इसके चलते 7 मार्च 2022 को पुलिस अधीक्षक द्वारा संजय कुमार पर सेंसर का दंड लगाया गया।
सब-इंस्पेक्टर संजय कुमार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी, लेकिन जब हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी, तो उन्होंने विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 12891/2022 के तहत सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
कानूनी मुद्दे:
इस मामले का प्रमुख कानूनी मुद्दा यह था कि संजय कुमार पर लगाए गए सेंसर के आदेश में क्या उत्तर प्रदेश पुलिस अधिकारियों के अधीनस्थ रैंक (दंड और अपील) नियम, 1991 का पालन किया गया था या नहीं।
अभियुक्त पक्ष की दलीलें:
1. प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: अभियुक्त के वकील ने तर्क दिया कि बिना कोई स्पष्टीकरण का अवसर दिए संजय कुमार पर सेंसर लगा दिया गया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
2. नियमों का पालन न होना: अभियुक्त पक्ष ने दावा किया कि प्रक्रिया ने नियम 5 और नियम 14(2) का उल्लंघन किया। विशेष रूप से, पुलिस विभाग ने उन्हें लिखित रूप से नोटिस नहीं दिया और न ही उन्हें अपनी बात रखने का मौका दिया।
3. अनसुने दावे: अभियुक्त पक्ष ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा उनके दावों को उचित तरीके से संबोधित नहीं किया गया। इसके अलावा, राज्य ने भी उनके दावों का खंडन करने के लिए कोई प्रतिवाद दाखिल नहीं किया।
राज्य ने अपने स्थायी अधिवक्ता के माध्यम से तर्क दिया कि अभियुक्त को जवाब देने का पर्याप्त मौका दिया गया था, जिसमें 25 सितंबर 2021 को सर्किल ऑफिसर द्वारा जारी एक नोटिस भी शामिल था।
अदालत का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति पमिडीघंटम श्री नरसिम्हा और संदीप मेहता द्वारा दिए गए फैसले में, संजय कुमार पर लगाए गए सेंसर को सही ठहराया। अदालत ने कहा कि इसमें प्राकृतिक न्याय का कोई उल्लंघन नहीं हुआ और पूरी प्रक्रिया नियमों के अनुसार थी।
अदालत के प्रमुख अवलोकन:
– अदालत ने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस अधिकारियों के अधीनस्थ रैंक (दंड और अपील) नियम, 1991 के तहत प्रक्रिया का ठीक से पालन किया गया था।
– अदालत ने पाया कि सर्किल ऑफिसर खड्डा द्वारा सब-इंस्पेक्टर संजय कुमार को स्पष्टीकरण के लिए नोटिस जारी किया गया था। हालांकि, उनका स्पष्टीकरण, जिसमें उन्होंने वीआईपी ड्यूटी में व्यस्त रहने का हवाला दिया था, संतोषजनक नहीं पाया गया।
– अदालत ने कहा कि सेंसर का आदेश पुलिस अधीक्षक, कुशीनगर द्वारा जारी किया गया था, जिन्हें नियम 7 के तहत इस तरह के दंड लगाने का अधिकार है। निर्णय पूरी तरह से प्रक्रिया का पालन करते हुए लिया गया था।
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि अभियुक्त द्वारा उठाए गए तर्कों में कोई दम नहीं था और सेंसर लगाने में कोई प्रक्रियात्मक या कानूनी गलती नहीं थी।
मामले का विवरण (Case Details):
– अभियुक्त (Appellant): सब-इंस्पेक्टर संजय कुमार, जो उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के हनुमानगंज थाना में तैनात थे।
– प्रतिवादी (Respondents): उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य।
– मामला संख्या (Case Number): सिविल अपील संख्या _____/2024 (विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 12891/2022 से उत्पन्न)।
– पीठ (Bench): न्यायमूर्ति पमिडीघंटम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता।
– वकील (Advocates):
– अभियुक्त के पक्ष में: अभियुक्त के वकील ने उचित सुनवाई के अभाव और प्रक्रिया संबंधी नियमों का पालन न होने की दलील दी।
– प्रतिवादी के पक्ष में: राज्य के स्थायी अधिवक्ता ने इन दलीलों का खंडन करते हुए अभियुक्त को जवाब देने का पर्याप्त अवसर प्रदान करने का तर्क दिया।