मज़दूर मुआवज़ा अधिनियम के तहत लेबर कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजय प्रसाद की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण निर्णय में, अदालत ने संजय करपी @ संजय कुमार करपी द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका देवघर के लेबर कोर्ट द्वारा जारी मुआवजा आदेश को चुनौती देने के लिए दाखिल की गई थी। हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया कि याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि याचिकाकर्ता ने 1923 के कर्मचारी मुआवजा अधिनियम के तहत निर्धारित वैधानिक अपील प्रक्रिया का पालन नहीं किया।

लेबर कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दिवंगत कर्मचारी कुमोद राउत के परिवार को ₹3,36,000 मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया था, जो 2010 में एक कार्यस्थल दुर्घटना में मारे गए थे। हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ता के पास अपील के रूप में वैकल्पिक उपाय उपलब्ध था, जिसे रिट याचिका दाखिल करने के बजाय अपनाया जाना चाहिए था।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 21 अक्टूबर, 2010 को हुई एक कार्यस्थल दुर्घटना से संबंधित है, जिसमें कुमोद राउत, 20 वर्षीय कर्मचारी, याचिकाकर्ता संजय करपी के ट्रैक्टर पर पत्थर लादने का काम कर रहा था। यह दुर्घटना दुमका जिले के अमाया पहाड़ी में हुई थी, जहां पत्थर लादते समय पत्थर कर्मचारी पर गिर गए और उसकी मौके पर ही मौत हो गई।

घटना के बाद सरैयाहाट थाना कांड संख्या 224/2010 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। याचिकाकर्ता पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304 और खनिज और विस्फोटक अधिनियम के अन्य प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए। इस घटना के बाद कुमोद राउत के पिता गोमड़ी राउत (उत्तरदायी) ने देवघर के लेबर कोर्ट में कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 के तहत मुआवजे की मांग की।

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22 जून, 2017 को लेबर कोर्ट ने याचिकाकर्ता को मृतक के परिवार को ₹3,36,000 मुआवजे के रूप में भुगतान करने का आदेश दिया।

मामले में कानूनी मुद्दे

1. रिट याचिका की सुनवाई योग्यता:

   इस मामले का प्रमुख कानूनी मुद्दा यह था कि क्या लेबर कोर्ट के आदेश के खिलाफ रिट याचिका दायर की जा सकती है, या याचिकाकर्ता को कर्मचारी मुआवजा अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपील दाखिल करनी चाहिए। अधिनियम की धारा 30(1)(a) अपील का वैधानिक उपाय प्रदान करती है, जिसका पालन याचिकाकर्ता ने नहीं किया।

2. नियोक्ता की जिम्मेदारी:

   याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसे गलत तरीके से दुर्घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था, यह दावा करते हुए कि उसे संबंधित आपराधिक मामले में बरी कर दिया गया था। हालांकि, लेबर कोर्ट ने प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर याचिकाकर्ता को मृतक का नियोक्ता माना।

3. अपील के लिए पूर्व-आवश्यक मुआवजा जमा:

   एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा धारा 30(1)(a) के तहत अपील के लिए मुआवजा राशि जमा करने की आवश्यकता से संबंधित था। याचिकाकर्ता ने अपील के बजाय रिट याचिका दायर करके इस आवश्यकता को दरकिनार करने का प्रयास किया।

पक्षों के तर्क

– याचिकाकर्ता की ओर से:

   याचिकाकर्ता के वकील श्री विजय शंकर झा ने तर्क दिया कि लेबर कोर्ट का निर्णय त्रुटिपूर्ण था। उन्होंने कहा कि अदालत ने गलत तरीके से याचिकाकर्ता को ट्रैक्टर का मालिक और मृतक का नियोक्ता माना। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसे संबंधित आपराधिक मामले में 12 जनवरी 2018 को बरी कर दिया गया था और दुर्घटना के लिए आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया था, इसलिए लेबर कोर्ट का मुआवजा आदेश कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं था।

– उत्तरदायी की ओर से:

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   उत्तरदायी (मृतक के पिता) के वकील श्री ऋषभ कुमार ने तर्क दिया कि रिट याचिका कानूनी रूप से सुनवाई योग्य नहीं थी। उन्होंने कहा कि कर्मचारी मुआवजा अधिनियम की धारा 30(1)(a) स्पष्ट रूप से अपील का वैकल्पिक उपाय प्रदान करती है, जिसका पालन याचिकाकर्ता ने नहीं किया। कुमार ने यह भी जोर दिया कि याचिकाकर्ता अपील दाखिल करने के बजाय रिट याचिका दायर करके मुआवजा देने से बचने का प्रयास कर रहा था।

अदालत के अवलोकन और निर्णय

न्यायमूर्ति संजय प्रसाद ने प्रस्तुत तर्कों और अभिलेखों की समीक्षा के बाद निर्णय दिया कि रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। अदालत ने अवलोकन किया कि कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 के तहत अपील का विशेष उपाय उपलब्ध है, जिसे याचिकाकर्ता ने नजरअंदाज किया। धारा 30(1)(a) के तहत, नियोक्ता मुआवजा आदेश के खिलाफ अपील कर सकता है, लेकिन अपील के साथ मुआवजा राशि की जमा रसीद भी होनी चाहिए।

न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा, “याचिकाकर्ता के पास धारा 30(1)(a) के तहत वैधानिक वैकल्पिक उपाय था। उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के बजाय, याचिकाकर्ता ने इस रिट याचिका को दायर किया है। अतः यह रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।”

अदालत ने पटना हाईकोर्ट और पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसलों का भी हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि जब वैधानिक अपील की व्यवस्था उपलब्ध हो, तो रिट याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। विशेष रूप से अदालत ने फ्रंटलाइन (एनसीआर) बिजनेस सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड बनाम अनीता देवी और अन्य (2019 SCC OnLine Pat 564) मामले का हवाला दिया, जिसमें पटना हाईकोर्ट ने निर्णय दिया था कि अपील पहले दायर की जानी चाहिए, तब रिट याचिका पर विचार किया जा सकता है।

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झारखंड हाईकोर्ट ने रिट याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 के प्रावधानों के अनुसार अपील दायर करने की स्वतंत्रता दी, बशर्ते कि मुआवजा राशि वैधानिक रूप से जमा की गई हो।

मामले का विवरण:

– मामले का शीर्षक: संजय करपी @ संजय कुमार करपी बनाम झारखंड राज्य और गोमड़ी राउत

– मामला संख्या: W.P. (L) No. 5587 of 2017

– पीठ: न्यायमूर्ति संजय प्रसाद

– याचिकाकर्ता के वकील: श्री विजय शंकर झा, श्री मनीष कुमार, श्री अभिषेक शरण

– उत्तरदायी के वकील: श्री ऋषभ कुमार

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