कारण बताओ नोटिस में विशेष जानकारी का अभाव: दिल्ली हाईकोर्ट ने जीएसटी रद्द करने के आदेश को रद्द किया

दिल्ली हाईकोर्ट ने डीजीएसटी आयुक्त द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस (एससीएन) में विशेष जानकारी का अभाव बताते हुए मेसर्स चौहान कंस्ट्रक्शन कंपनी के माल एवं सेवा कर (जीएसटी) पंजीकरण को रद्द करने के आदेश को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति विभु बाखरू और न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन न करने वाली प्रशासनिक कार्रवाइयों को बरकरार नहीं रखा जा सकता।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता मेसर्स चौहान कंस्ट्रक्शन कंपनी, जिसका प्रतिनिधित्व उसके मालिक राजेश चौहान ने किया, ने 5 अप्रैल, 2021 के आदेश को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका (डब्ल्यू.पी. (सी) 12506/2024) दायर की, जिसमें उसका जीएसटी पंजीकरण रद्द कर दिया गया था। रद्दीकरण 26 मार्च, 2021 को जारी कारण बताओ नोटिस (SCN) पर आधारित था। नोटिस में आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता ने “जीएसटी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए माल और/या सेवाओं की आपूर्ति के बिना चालान या बिल जारी किए थे,” जिसके कारण इनपुट टैक्स क्रेडिट या टैक्स रिफंड का गलत लाभ या उपयोग हुआ। हालांकि, नोटिस में इन आरोपों को पुष्ट करने के लिए कोई विशिष्ट विवरण या सबूत नहीं दिए गए।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता श्री विनीत भाटिया ने किया, जबकि डीजीएसटी के आयुक्त सहित प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता श्री अविष्कार सिंघवी, श्री विवेक कुमार सिंह, श्री नावेद अहमद और श्री शुभम कुमार ने किया।

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प्रमुख कानूनी मुद्दे

अदालत के समक्ष मुख्य कानूनी मुद्दा यह था कि क्या एससीएन और उसके बाद के रद्दीकरण आदेश ने विशिष्ट विवरणों की कमी के कारण प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि एससीएन प्रस्तावित रद्दीकरण के लिए कोई भी समझदारीपूर्ण कारण या सबूत देने में विफल रहा, जिससे उन्हें प्रभावी ढंग से जवाब देने का अवसर नहीं मिला। इसके अलावा, एससीएन में अनिवार्य व्यक्तिगत सुनवाई के लिए कोई तिथि, समय या स्थान निर्दिष्ट नहीं किया गया, जिससे प्रक्रिया संबंधी अनियमितताएं और बढ़ गईं।

न्यायमूर्ति विभु बाखरू ने कहा कि एससीएन में विवरण की कमी और व्यक्तिगत सुनवाई के लिए स्पष्ट अवसर की अनुपस्थिति प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है, जिसके अनुसार किसी पक्ष को अपना मामला पेश करने के लिए उचित अवसर दिया जाना चाहिए।

न्यायालय की टिप्पणियां और निर्णय

दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि मेसर्स चौहान कंस्ट्रक्शन कंपनी को जारी एससीएन में “कोई विवरण नहीं था” और “याचिकाकर्ता के जीएसटी पंजीकरण को रद्द करने के कारणों के बारे में करदाता को कोई सुराग नहीं दिया गया।” न्यायालय ने कहा कि एससीएन में रद्द करने की अनुमति देने वाले कानूनी प्रावधान का उल्लेख तो किया गया, लेकिन इसमें उन विशिष्ट आधारों या तथ्यों की व्याख्या नहीं की गई, जिनके कारण ऐसी कार्रवाई की आवश्यकता थी।

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पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को जारी किए गए बाद के नोटिस, जिनमें 29 दिसंबर, 2021 और 19 जुलाई, 2023 की तारीख वाले नोटिस शामिल हैं, में भी इसी तरह की कमियां थीं। इन नोटिसों में व्यक्तिगत सुनवाई के लिए कोई तिथि, समय या स्थान नहीं बताया गया था, तथा दिए गए कारण अस्पष्ट और गैर-विशिष्ट थे। उदाहरण के लिए, एक नोटिस में केवल इतना कहा गया था, “रद्दीकरण को रद्द करने के लिए दर्ज किया गया कारण उचित नहीं है,” बिना किसी अतिरिक्त स्पष्टीकरण के।

जीएसटी रद्दीकरण आदेश को रद्द करते हुए, न्यायालय ने कहा: “आक्षेपित रद्दीकरण आदेश शून्य है क्योंकि इसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए पारित किया गया था। याचिकाकर्ता को उसके जीएसटी पंजीकरण को रद्द करने का प्रस्ताव करने के लिए कोई भी समझदारीपूर्ण कारण नहीं दिया गया था और उसे व्यक्तिगत रूप से सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया था।”

न्यायालय के अंतिम निर्देश

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इन टिप्पणियों के आलोक में, न्यायालय ने आक्षेपित रद्दीकरण आदेश और एससीएन दोनों को रद्द कर दिया, तथा प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता के जीएसटी पंजीकरण को तुरंत बहाल करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को तीस दिनों के भीतर कोई भी देय जीएसटी रिटर्न दाखिल करने और लागू होने पर ब्याज और दंड के साथ किसी भी बकाया कर का भुगतान करने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति बाखरू ने स्पष्ट किया कि न्यायालय ने निरस्तीकरण आदेश को निरस्त कर दिया है, लेकिन इससे अधिकारियों को कानून के अनुपालन में याचिकाकर्ता के खिलाफ नई कार्रवाई शुरू करने से नहीं रोका जा सकता, यदि कोई वैधानिक उल्लंघन या बकाया राशि वसूली जानी हो।

मामले का विवरण

मामले का शीर्षक: मेसर्स चौहान कंस्ट्रक्शन कंपनी, इसके मालिक राजेश चौहान के माध्यम से बनाम डीजीएसटी आयुक्त और अन्य।

मामला संख्या: डब्ल्यू.पी. (सी) 12506/2024

पीठ: न्यायमूर्ति विभु बाखरू और न्यायमूर्ति सचिन दत्ता

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