धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के एक साथ अपराध एक ही तथ्यों पर नहीं बनाए जा सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट

एक उल्लेखनीय फैसले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के आरोप एक ही तथ्यों पर एक साथ नहीं बनाए जा सकते। यह निर्णय न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने प्रियंका गुप्ता और राहुल गुप्ता द्वारा दायर आवेदन धारा 482 संख्या – 4769/2024 पर सुनवाई करते हुए सुनाया।

आवेदकों ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 (धोखाधड़ी), 406 (आपराधिक विश्वासघात) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत शिकायत मामला संख्या 215/2020 (श्रीमती श्वेता गुप्ता बनाम राहुल गुप्ता और अन्य) में जारी 1 जुलाई, 2023 के समन आदेश को रद्द करने की मांग की।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला आवेदकों में से एक राहुल गुप्ता की पत्नी श्रीमती श्वेता गुप्ता द्वारा दायर की गई शिकायत से उत्पन्न हुआ। उसने आरोप लगाया कि उसके पति और ननद प्रियंका गुप्ता ने उसके साथ 1,18,000 रुपये की धोखाधड़ी करने की साजिश रची। शिकायत के अनुसार, बैंक मैनेजर के पद पर कार्यरत प्रियंका ने श्वेता के बैंक खाते से उसकी अनुमति के बिना पैसे निकाल लिए। यह भी आरोप लगाया गया कि इस राशि में से 70,000 रुपये प्रियंका के खाते में ट्रांसफर किए गए।

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शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि उसके पति राहुल गुप्ता ने उसके बैंक खाते को अपने ईमेल और फोन नंबर से लिंक कर दिया था ताकि उसे कोई लेनदेन अलर्ट न मिले। कथित धोखाधड़ी तब सामने आई जब श्वेता ने 17 फरवरी, 2019 को अपने बैंक खाते का विवरण चेक किया।

न्यायालय के कानूनी मुद्दे और अवलोकन

अदालत को यह निर्धारित करना था कि क्या धोखाधड़ी (धारा 420 आईपीसी) और आपराधिक विश्वासघात (धारा 406 आईपीसी) के अपराध एक ही तथ्य पर एक साथ कायम रह सकते हैं। न्यायमूर्ति शमशेरी ने साक्ष्य और कानूनी तर्कों पर विचार करने के बाद माना कि ये दोनों अपराध एक ही तथ्यों के आधार पर एक साथ नहीं हो सकते।

न्यायालय ने हाल ही में दिल्ली रेस क्लब (1940) लिमिटेड एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (आपराधिक अपील संख्या 3114/2024) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला दिया, जिसमें धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के अपराधों को गठित करने के लिए आवश्यक विशिष्ट तत्वों पर जोर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की:

“यह देखना वाकई बहुत दुखद है कि इतने सालों के बाद भी, न्यायालय आपराधिक विश्वासघात और धोखाधड़ी के बीच के बारीक अंतर को नहीं समझ पाए हैं… मजिस्ट्रेट को यह पता लगाने के लिए सावधानीपूर्वक अपने दिमाग का इस्तेमाल करना चाहिए कि क्या आरोप, जैसा कि कहा गया है, वास्तव में इन विशिष्ट अपराधों का गठन करते हैं।”

न्यायमूर्ति शमशेरी ने इस तर्क को लागू किया और निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान मामले में तथ्यों के एक ही सेट पर दोनों अपराध नहीं बनाए जा सकते। उन्होंने कहा:

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“तथ्यों के एक ही सेट पर, धारा 420 और 406 आईपीसी के तहत अपराध। एक साथ नहीं बनाया जा सकता… न तो कोई ‘सौंपा गया’ था और न ही किसी ‘कानून के निर्देश’ या ‘किसी कानूनी अनुबंध’ का उल्लंघन करते हुए ‘बेईमानी से गबन’ का आरोप था।’

कोर्ट का फैसला

कोर्ट ने धारा 420 (धोखाधड़ी) और 120-बी (आपराधिक साजिश) आईपीसी के तहत समन आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया कि इन आरोपों के लिए आवेदकों के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त सबूत थे। हालांकि, कोर्ट ने धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) आईपीसी के तहत आरोपों को खारिज कर दिया, यह फैसला सुनाते हुए कि इस मामले में इस अपराध को बनाने के लिए आवश्यक तत्व अनुपस्थित थे।

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कोर्ट ने यह भी उजागर किया कि आंतरिक बैंक जांच, जिसमें प्रियंका गुप्ता की ओर से कोई गलत काम नहीं पाया गया, उसी आरोपों पर आपराधिक कार्यवाही को रोक नहीं सकती, क्योंकि आंतरिक जांच और आपराधिक मामलों के बीच सबूत के मानक अलग-अलग होते हैं।

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