राज्य सरकार के पास फीस विनियामक समिति की संस्तुति के बिना फीस तय करने का अधिकार नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

यू.पी. अनएडेड मेडिकल एंड एलाइड साइंसेज कॉलेज वेलफेयर एसोसिएशन एवं अन्य बनाम यू.पी. राज्य एवं अन्य (रिट-सी संख्या-6828/2024) मामले में शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए उत्तर प्रदेश में निजी मेडिकल कॉलेजों के लिए फीस संरचना के संबंध में विवाद शामिल था। याचिकाकर्ता, गैर-सहायता प्राप्त निजी मेडिकल कॉलेजों के एक समूह ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस निर्णय को चुनौती दी थी, जिसमें उत्तर प्रदेश निजी व्यावसायिक शैक्षणिक संस्थान (प्रवेश का विनियमन और फीस का निर्धारण) अधिनियम, 2006 (”2006 का अधिनियम”) के तहत फीस विनियामक समिति की नई संस्तुतियों के बिना पिछले शैक्षणिक सत्र की फीस संरचना को बढ़ाने का निर्णय लिया गया था।

मुख्य कानूनी मुद्दे:

1. राज्य सरकार का अधिकार क्षेत्र: क्या राज्य सरकार 2006 के अधिनियम के अनुसार शुल्क विनियामक समिति की संस्तुति के बिना शुल्क संरचना को अधिसूचित और विस्तारित कर सकती है।

2. राज्य सरकार की अधिसूचना की वैधता: 11.07.2024 के सरकारी आदेश की वैधता और वैधता, जिसने शुल्क विनियामक समिति के इनपुट के बिना शैक्षणिक सत्र 2023-24 से 2024-25 तक शुल्क संरचना को बढ़ाया।

3. याचिका की स्थिरता: क्या मेडिकल कॉलेजों के एक संघ और व्यक्तिगत संस्थानों द्वारा दायर रिट याचिका स्थिरता योग्य थी।

न्यायालय का निर्णय:

न्यायमूर्ति आलोक माथुर की अध्यक्षता में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 अगस्त, 2024 को एक निर्णय सुनाया, जिसमें कहा गया कि राज्य सरकार ने शुल्क विनियामक समिति की संस्तुति के बिना शुल्क संरचना को बढ़ाकर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर काम किया है। न्यायालय ने कई मुख्य बिंदुओं पर ध्यान दिया:

1. शुल्क विनियामक समिति की भूमिका: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि 2006 का अधिनियम स्पष्ट रूप से शुल्क विनियामक समिति को शुल्क निर्धारित करने की जिम्मेदारी सौंपता है। राज्य सरकार की भूमिका समिति द्वारा निर्धारित शुल्क को अधिसूचित करने तक सीमित है।

2. वैधानिक कर्तव्यों का उल्लंघन: न्यायालय ने शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए शुल्क निर्धारित करने के अपने वैधानिक कर्तव्य को पूरा करने में विफल रहने के लिए शुल्क विनियामक समिति की आलोचना की, जिसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार ने अवैध रूप से विवादित सरकारी आदेश जारी किया।

3. वैध अपेक्षा: न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं की वैध अपेक्षा को बरकरार रखा कि शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए शुल्क का निर्धारण समिति द्वारा कानून के अनुसार किया जाएगा।

4. याचिका की स्वीकार्यता: न्यायालय ने रिट याचिका की स्वीकार्यता के संबंध में राज्य की प्रारंभिक आपत्ति को खारिज कर दिया, जिसमें पुष्टि की गई कि पीड़ित पक्ष के रूप में व्यक्तिगत मेडिकल कॉलेजों के पास निवारण मांगने का अधिकार है।

5. न्यायालय का निर्देश: न्यायालय ने 11.07.2024 के सरकारी आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें फीस विनियामक समिति को शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए एक निश्चित अवधि के भीतर फीस निर्धारित करने का निर्देश दिया गया था। न्यायालय ने राज्य सरकार को भविष्य में इसी तरह के कानूनी विवादों से बचने के लिए फीस विनियामक समिति का समय पर गठन सुनिश्चित करने का भी आदेश दिया।

महत्वपूर्ण टिप्पणियां:

न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं, जिनमें शामिल हैं:

– अधिकार क्षेत्र पर: “फीस के निर्धारण की जिम्मेदारी केवल उक्त अधिनियम के तहत गठित फीस विनियामक समिति को दी गई है।”

– राज्य सरकार की भूमिका पर: “फीस विनियामक समिति की किसी भी सिफारिश के बिना राज्य सरकार के पास 11/07/2024 के विवादित सरकारी आदेश को पारित करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।”

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पक्षों के वकील:

– याचिकाकर्ताओं के लिए: वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप नारायण माथुर, श्री अमित जायसवाल, श्री एस.के. चौधरी, श्री मुदित अग्रवाल, सुश्री ऐश्वर्या माथुर, और श्री आदित्य सिंह।

– उत्तरदाताओं के लिए: श्री राहुल शुक्ला, अतिरिक्त मुख्य स्थायी वकील।

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