कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि 50 वर्ष से अधिक आयु की महिला शिक्षकों और 55 वर्ष से अधिक आयु के पुरुष शिक्षकों को ‘अतिरिक्त शिक्षक’ के रूप में लेबल किए जाने और बाद में स्थानांतरण के अधीन होने से छूट दी गई है। यह निर्णय विभिन्न विद्यालयों में शिक्षकों के युक्तिकरण और पुनर्नियुक्ति की प्रक्रिया से संबंधित है।
न्यायालय का निर्णय कर्नाटक राज्य सिविल सेवा (शिक्षकों के स्थानांतरण का विनियमन) अधिनियम, 2020 की धारा 10(1)(vi) को पुष्ट करता है, जो स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है कि अधिकारियों द्वारा ऐसी आयु-आधारित छूट का सम्मान किया जाना चाहिए।
यह निर्णय तब आया जब न्यायालय ने स्कूल शिक्षा विभाग की अपीलों को खारिज कर दिया, जिसने कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेशों को चुनौती दी थी। न्यायाधिकरण के इन आदेशों ने पहले दो शिक्षकों, उमादेवी हुंडारकर और प्रभाती रोनाड के तबादलों को रद्द कर दिया था, जो बागलकोट जिले के हाई स्कूलों में कार्यरत थे और जिन्हें ‘अतिरिक्त शिक्षक’ होने के आधार पर स्थानांतरित किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश एन वी अंजारिया और न्यायमूर्ति एस जी पंडित की अगुवाई वाली खंडपीठ ने पात्र शिक्षकों के पक्ष में इन लाभकारी प्रावधानों को लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया, भले ही शिक्षकों ने इन छूटों का स्पष्ट रूप से अनुरोध किया हो या नहीं।
पीठ ने आगे कहा कि यह वैधानिक प्रावधान न केवल शिक्षकों को अधिकार प्रदान करता है, बल्कि इन शिक्षकों की सुरक्षा के लिए विधायी ढांचे का सख्ती से पालन करने के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी को भी रेखांकित करता है।
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अदालत ने कहा कि इन शिक्षकों को अतिरिक्त के रूप में गलत तरीके से वर्गीकृत करना और उनके बाद के स्थानांतरण अनुचित थे, खासकर यह देखते हुए कि शिक्षकों ने अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों को प्रकाश में लाया था।