केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में डॉ. प्रमोद जॉन के खिलाफ कार्यवाही को रद्द कर दिया है, जिन पर माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत अपने बुजुर्ग पिता को छोड़ने का आरोप लगाया गया था। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि माता-पिता को छोड़ने के अपराध के लिए ‘पूर्ण उपेक्षा’ के सबूत की आवश्यकता होती है।
मामले की पृष्ठभूमि
सीआरएल.एमसी संख्या 1262/2024 के रूप में पंजीकृत मामला 30 नवंबर, 2016 को हुई एक घटना के इर्द-गिर्द घूमता है। 58 वर्षीय डॉ. प्रमोद जॉन पर उनकी बहन ने आरोप लगाया था कि उन्होंने उनके पिता को बिना पर्याप्त देखभाल के एर्नाकुलम से तिरुवनंतपुरम टैक्सी में भेजकर छोड़ दिया। घटना के तीन महीने बाद दर्ज की गई शिकायत में आरोप लगाया गया था कि डॉ. जॉन ने उनके पिता की उपेक्षा की, जो बुढ़ापे की बीमारियों से पीड़ित थे।
कानूनी मुद्दे शामिल हैं
प्राथमिक कानूनी मुद्दा यह था कि क्या डॉ. जॉन के कार्यों में माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 24 के तहत परित्याग शामिल है। अभियोजन पक्ष ने शुरू में अधिनियम की धारा 20(3) का हवाला दिया, जो मौजूद नहीं है। अदालत को यह निर्धारित करना था कि क्या डॉ. जॉन के कार्य कानून द्वारा परिभाषित परित्याग के मानदंडों को पूरा करते हैं।
अदालत का निर्णय
न्यायमूर्ति बेचू कुरियन थॉमस ने मामले की अध्यक्षता की। अदालत ने कहा कि ‘परित्याग’ शब्द के लिए पूर्ण उपेक्षा की आवश्यकता होती है, और जब ‘पूरी तरह से’ शब्द उपसर्ग किया जाता है, तो यह पूर्ण और संपूर्ण परित्याग को इंगित करता है। अदालत ने पाया कि बुजुर्ग माता-पिता को उनकी बेटी के घर ले जाने के लिए टैक्सी की व्यवस्था करना परित्याग नहीं माना जाता है।
मुख्य अवलोकन:
– परित्याग की परिभाषा: “‘परित्याग’ शब्द का अर्थ है पूर्ण उपेक्षा। उक्त शब्द के आगे ‘पूर्ण’ शब्द लगाने पर यह पूर्ण और संपूर्ण परित्याग का संकेत देता है… इस प्रकार जब तक माता-पिता को वरिष्ठ नागरिक की देखभाल के लिए किसी व्यवस्था के बिना किसी स्थान पर छोड़कर पूर्ण और संपूर्ण परित्याग नहीं किया जाता है, तब तक अपराध नहीं कहा जा सकता है।”
– परिवहन का संदर्भ: “यह तथ्य कि वरिष्ठ नागरिक/माता-पिता को उनकी बेटी के घर ले जाने के लिए टैक्सी की व्यवस्था की गई थी, यह दर्शाता है कि कानून के अनुसार कोई परित्याग नहीं हुआ था।”
– शिकायत का स्रोत: न्यायालय ने यह भी नोट किया कि शिकायत बुजुर्ग माता-पिता की ओर से नहीं बल्कि उनकी बेटी की ओर से की गई थी, जिससे अभियोजन पक्ष का मामला और कमजोर हो गया।
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निष्कर्ष
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि डॉ. प्रमोद जॉन के खिलाफ अभियोजन न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग था और सी.सी. में उनके खिलाफ सभी कार्यवाही को रद्द कर दिया। न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट न्यायालय-IX, एर्नाकुलम की फाइलों पर क्रमांक 1504/2017।
प्रतिनिधित्व
डॉ. प्रमोद जॉन का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता के.आर. विनोद, एम.एस. लेथा, नबील खादर और राहुल एस. ने किया। राज्य का प्रतिनिधित्व लोक अभियोजक आशी एम.सी. ने किया।