सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देश भर में लापता लोगों का पता लगाने और लावारिस शवों की पहचान करने के लिए डीएनए प्रोफाइल का डेटाबेस बनाने की मांग वाली याचिका पर केंद्र और अन्य से जवाब मांगा।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने वकील के सी जैन की याचिका पर केंद्र, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो और अन्य को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा।
व्यक्तिगत रूप से उपस्थित याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत को बताया कि भारत संघ ने 2018 में आश्वासन दिया था कि अज्ञात और लावारिस शवों या लापता व्यक्तियों के रिकॉर्ड के रखरखाव को सक्षम करने के लिए डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए एक विधेयक संसद में लाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि सरकार ने पिछले साल जुलाई में लोकसभा से डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019 वापस ले लिया, जिसका उद्देश्य किसी व्यक्ति की पहचान के लिए डीएनए प्रौद्योगिकी के उपयोग को विनियमित करना था।
इसके बाद पीठ इस मामले में नोटिस जारी करने पर सहमत हो गई।
शीर्ष अदालत ने 2014 में गृह मंत्रालय, सीबीआई और वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग के सचिव को नोटिस जारी कर एक एनजीओ द्वारा दायर याचिका पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी थी।
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एनजीओ ने अपनी याचिका में कहा, “चूंकि पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके शवों की पहचान नहीं की जा सकती है, इसलिए संभावित अपराध के अपराधियों का पता नहीं चल पाता है और जिन परिवारों से पीड़ित थे, उन्हें कभी भी अपने निकट और प्रियजनों के भाग्य के बारे में पता नहीं चलता है।” वाले।”
ऐसा कहा गया था कि अज्ञात शवों की डीएनए प्रोफाइलिंग से लापता व्यक्तियों का मिलान करने और उनका पता लगाने में मदद मिल सकती है।
एनजीओ ने दावा किया था कि हालांकि सरकार 2007 से अज्ञात शवों की डीएनए प्रोफाइलिंग के प्रस्ताव पर विचार कर रही है, लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।