सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को माता-पिता बनने के विवादों पर फैसला करने के लिए देश भर में डीएनए परीक्षण की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि अदालतें पूरी व्यवस्था नहीं चला सकतीं।
याचिका न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आयी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिका में की गई प्रार्थनाओं को अखिल भारतीय आधार पर स्वीकार करना बहुत मुश्किल है।
पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा, “अदालतें पूरी व्यवस्था नहीं चला सकतीं। यह किसी मामले में सामने आने वाले मुद्दे पर फैसला कर सकती है।”
पीठ ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 का उल्लेख किया जिसके तहत वैध विवाह की निरंतरता के दौरान जन्म बच्चे की वैधता का निर्णायक प्रमाण है।
“यह कैसी याचिका है?” शीर्ष अदालत ने व्यक्तिगत रूप से पेश हुए याचिकाकर्ता से पूछा, “क्या आप चाहते हैं कि पूरे देश में डीएनए परीक्षण हो?”
इसमें याचिकाकर्ता से पूछा गया कि क्या उनका कोई व्यक्तिगत मुकदमा है।
कोई भी भारतीय नागरिक या वकील अपनी व्यक्तिगत क्षमता से अदालत में याचिकाकर्ता के रूप में उपस्थित हो सकता है।
याचिकाकर्ता ने सकारात्मक जवाब दिया और कहा कि इस मुद्दे पर उसका सात साल पुराना विवाद है।
पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा, “केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता के कुछ मुद्दे लंबित हैं, अखिल भारतीय आधार पर प्रार्थना स्वीकार करना बहुत मुश्किल होगा।”