सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 2003 में सॉफ्टवेयर इंजीनियर बी.वी. गिरीश की हत्या के मामले में चार दोषियों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए उन्हें कर्नाटक के राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दाखिल करने की अनुमति दी।
न्यायमूर्ति एम.एम. सुन्दरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें शुबा, अरुण वर्मा, वेंकटेश और दिनेश को हत्या और आपराधिक साजिश के आरोप में दोषी ठहराया गया था।
पीठ ने कहा कि चारों दोषियों ने यह अपराध तब किया जब वे युवा थे और “उनकी रगों में एड्रेनालिन दौड़ रहा था।” हालांकि अदालत ने साक्ष्यों को पर्याप्त मानते हुए उनकी सजा को सही ठहराया, उसने उनकी जेल में अब तक की अच्छी आचरण को ध्यान में रखते हुए उन्हें एक मौका देने की बात कही।

“वे जन्मजात अपराधी नहीं थे”
पीठ ने कहा, “वे अपराधी बनकर पैदा नहीं हुए थे, बल्कि यह एक खतरनाक रोमांच के चलते हुए गलत निर्णय का परिणाम था, जिसने उन्हें एक जघन्य अपराध की ओर धकेल दिया।” अदालत ने यह भी कहा कि उस समय दो दोषी किशोरावस्था में थे और पीड़ित की मंगेतर शुबा भी अभी-अभी उस उम्र से निकली थीं।
“एक युवा लड़की की आवाज़ को दबा दिया गया”
अदालत ने शुबा की मानसिक स्थिति और पारिवारिक दबाव पर भी टिप्पणी की और कहा कि यदि परिवार ने उसकी मानसिक दशा और इच्छाओं को समझने की कोशिश की होती, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना नहीं घटती।
पीठ ने कहा, “यह उस स्थिति का उदाहरण है, जहां एक महत्वाकांक्षी युवा लड़की की आवाज़ को एक थोपे गए पारिवारिक निर्णय ने कुचल दिया, जिससे उसके भीतर तीव्र उथल-पुथल पैदा हुई।” अदालत ने इसे “मानसिक विद्रोह और अंधे रोमांस के घातक मेल” का परिणाम बताया, जिसने न केवल एक निर्दोष युवक की जान ली, बल्कि तीन अन्य लोगों की ज़िंदगियों को भी बर्बाद कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
बी.वी. गिरीश की सगाई 30 नवंबर 2003 को शुबा से हुई थी। पुलिस के अनुसार, शुबा पहले से अरुण वर्मा के साथ रिश्ते में थीं और अपने पिता के दबाव में हुई सगाई से नाराज़ थीं। इसके बाद शुबा ने अरुण, वेंकटेश और दिनेश के साथ मिलकर गिरीश की हत्या की साजिश रची।
3 दिसंबर 2003 को शुबा ने गिरीश को डिनर पर ले जाने के बहाने बाहर बुलाया और एयरपोर्ट के पास विमान देखने के बहाने स्कूटर रुकवाया, जहां उसकी हत्या कर दी गई। ट्रायल कोर्ट ने सभी चारों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
दया याचिका दाखिल करने की छूट
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सजा में कोई राहत नहीं दी, लेकिन दोषियों को राज्यपाल के समक्ष आठ सप्ताह के भीतर दया याचिका दाखिल करने की अनुमति दी। अदालत ने कहा, “हम केवल यही अनुरोध करते हैं कि संवैधानिक प्राधिकारी इस मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए याचिका पर विचार करें।”