सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण याचिका के माध्यम से सिख महिलाओं और बच्चों के खिलाफ उनके पारंपरिक परिधान और नामों को लेकर होने वाली बदसलूकी और मज़ाक का मुद्दा उठाया गया है। वकील हरविंदर चौधरी ने एक जनहित याचिका के तहत उन वेबसाइट्स पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है जो सिख समुदाय को नकारात्मक रूप से दर्शाती हैं, खासकर ऐसे चुटकुलों के माध्यम से जो उन्हें “मंदबुद्धि, मूर्ख और बेवकूफ” बताने की कोशिश करते हैं।
यह मामला 2007 में मुंबई के एक प्रकाशक की गिरफ्तारी से जुड़ा है, जिसे सिख समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करने के आरोप में पकड़ा गया था। 2015 में हरविंदर चौधरी द्वारा दाखिल की गई इस जनहित याचिका के बाद यह मुद्दा फिर से सामने आया। हालांकि, शुरुआत में न्यायालय ने इस पर अनिच्छा जाहिर की थी, लेकिन चौधरी के निरंतर प्रयासों ने इस मुद्दे के मनोवैज्ञानिक प्रभावों को उजागर किया, जिससे यह मामला फिर से चर्चा में आ गया।
आज की सुनवाई में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने इस मामले पर निर्णय को आठ हफ्तों के लिए टाल दिया, ताकि विभिन्न सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समितियों से सुझाव प्राप्त किए जा सकें। चौधरी, जो खुद और अंतरराष्ट्रीय सिख महिला परिषद की ओर से पेश हो रही थीं, ने बताया कि सिख महिलाओं, जिन्हें उनके खास पगड़ी और सफेद सूट से पहचाना जाता है, को सार्वजनिक रूप से मज़ाक का शिकार बनाया जाता है, जिससे समाज में उनके प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण बनता है।
बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं। कई बच्चों ने स्कूल में होने वाले तानों से बचने के लिए पारंपरिक सिख उपनाम जैसे ‘कौर’ और ‘सिंह’ का उपयोग करना बंद कर दिया है। सुनवाई के दौरान एक दर्दनाक घटना का जिक्र किया गया, जिसमें एक लड़के ने स्कूल में लगातार बदमाशी के कारण आत्महत्या कर ली। इस घटना के बाद उसके परिवार ने उसका बाल कटवा दिया, जो सिख धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण परंपरा है।
2017 में न्यायालय द्वारा पहले इस मामले में दिशा-निर्देश जारी करने से इनकार किया गया था, लेकिन अब अदालत इस मुद्दे से निपटने के लिए नए दृष्टिकोण पर विचार कर रही है। खासकर स्कूलों में बच्चों को ऐसी बदसलूकी के प्रति संवेदनशील बनाने पर जोर दिया जा रहा है। इसके साथ ही, साइबर बुलिंग की चुनौतियों पर भी चर्चा हुई, जिसमें समुदाय को ऑनलाइन सुरक्षा प्रदान करने के लिए मजबूत उपायों की आवश्यकता पर बल दिया गया।