इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि फैसले में किसी गलती को दुरुस्त करने के लिए ही पुनर्विलोकन की शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है, नया विचार प्रतिस्थापित करने के लिए नहीं। यदि आदेश में स्पष्ट तौर पर गलती नहीं दिखती तो पुनर्विलोकन अर्जी पोषणीय नहीं है।
कोर्ट ने यमुना एक्सप्रेस-वे अथॉरिटी की अर्जेंसी क्लाज में हुए अधिग्रहण मामले में फैसले को पुनर्विलोकन करने की अर्जी खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति विपिन चन्द्र दीक्षित की खंडपीठ ने डी पी पब्लिक स्कूल मिर्जापुर व छह अन्य की याचिका पर पारित आदेश का पुनर्विलोकन की अर्जी की सुनवाई करते हुए दिया है। याचियों के अधिवक्ता ने अथॉरिटी की अर्जी का विरोध किया।
इनका कहना है कि गौतमबुद्धनगर की सदर तहसील के मिर्जापुर गांव की जमीन का 2010 मे अर्जेंसी क्लाज में सुनियोजित विकास के लिए अधिग्रहण किया गया।कुछ जमीनों का कब्जा लिया गया और कुछ का नहीं।तमाम किसानों को मुआवजा अवार्ड घोषित किया गया। कुल 52.2023 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत की गई। 36.7810 हेक्टेयर जमीन अथॉरिटी को सौंपी गया। 13 मार्च 2012 को 18.6990 हेक्टेयर का अवार्ड घोषित किया गया। किंतु कब्जा केवल 36.6525 हेक्टेयर जमीन का ही लिया गया। 18.4213 हेक्टेयर जमीन का कब्जा राज्य सरकार ने ही नहीं लिया। इसे अथॉरिटी को नहीं सौंपा गया। जिस पर याचिका दायर की गई।
हाईकोर्ट ने 22 दिसम्बर 16 को याचिका स्वीकार कर ली और सरकार को 2013 के कानून के तहत दो माह में मुआवजा तय कर भुगतान करने का निर्देश दिया। जिस पर पुनर्विलोकन करने की मांग की गई थी।