उड़ीसा हाईकोर्ट ने 28 अक्टूबर, 2024 को दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले में रायकिशोर जेना को उसकी पत्नी बेंगा @ सिनिया जेना की क्रूर हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी, तथा बचाव पक्ष के इस तर्क को खारिज कर दिया कि अपराध “गंभीर और अचानक उकसावे” के तहत किया गया था। न्यायमूर्ति एस.के. साहू और न्यायमूर्ति चित्तरंजन दाश की पीठ ने फैसला सुनाया कि खाना बनाते समय पत्नी द्वारा अपने पति से भोजन के लिए प्रतीक्षा करने को कहना अत्यधिक हिंसा के कृत्य के लिए पर्याप्त उकसावे का कारण नहीं बन सकता।
घटना
यह मामला 25 सितंबर, 2008 को ओडिशा के जाजपुर जिले के कुआंशा गांव में हुई एक दुखद घटना के इर्द-गिर्द घूमता है। रायकिशोर जेना अपने खेत से लौटते समय अपनी पत्नी से भोजन मांगता है। जब उसने खाना बनाने के दौरान उसे रुकने के लिए कहा, तो जेना ने गुस्से में आकर एक ‘कटूरी’ (एक धारदार हथियार) उठाया और उसकी गर्दन, चेहरे और सिर पर कई घातक वार किए। दंपति की नाबालिग बेटी दीपिका जेना इस भयावह कृत्य की प्रत्यक्षदर्शी थी।
हमले के बाद, मृतक का शव बरामद किया गया और घटनास्थल से खून से सने सबूतों के साथ हत्या का हथियार बरामद किया गया। मामला आईपीसी की धारा 302 के तहत दर्ज किया गया था।
प्रमुख कानूनी मुद्दे
1. गंभीर और अचानक उकसावे:
बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि यह घटना गंभीर और अचानक उकसावे से हुई क्योंकि काम के दिन के बाद भूखा पति गुस्से में बेकाबू होकर काम कर रहा था। बचाव पक्ष ने आईपीसी की धारा 304 के तहत हत्या के लिए दोषी ठहराए जाने को कम करने का अनुरोध किया।
2. प्रत्यक्षदर्शी (बाल साक्षी) की विश्वसनीयता:
अपीलकर्ता ने नाबालिग बेटी की गवाही पर भरोसा करने को चुनौती दी, जिसमें घटना के बाद रिश्तेदारों के साथ रहने के दौरान संभावित ट्यूशन का दावा किया गया।
3. हत्या की प्रकृति:
अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना था कि मौत आकस्मिक या प्राकृतिक नहीं थी, बल्कि जानबूझकर की गई हत्या थी।
अदालत के अवलोकन और निष्कर्ष
1. हत्या की प्रकृति स्थापित:
अदालत ने डॉ. सुधीरंजन नायक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए मौत की हत्या की प्रकृति की पुष्टि की। रिपोर्ट में धारदार हथियार से किए गए नौ गंभीर घावों का विवरण दिया गया था, जो सामान्य प्रकृति में मौत का कारण बनने के लिए पर्याप्त थे।
2. प्रत्यक्षदर्शी की विश्वसनीयता:
अदालत ने दंपति की 13 वर्षीय बेटी दीपिका जेना की गवाही पर महत्वपूर्ण जोर दिया, जिसने हत्या की ओर ले जाने वाली घटनाओं का विशद वर्णन किया। पीठ ने जिरह के दौरान उसकी निरंतरता पर ध्यान दिया और ट्यूशन का कोई सबूत नहीं पाया।
3. गंभीर और अचानक उकसावे के तर्क को खारिज करना:
अदालत ने फैसला सुनाया कि किसी को भोजन के लिए प्रतीक्षा करने के लिए कहना ही गंभीर और अचानक उकसावे के बराबर नहीं है, जैसा कि धारा 300 आईपीसी के अपवाद 1 के तहत परिभाषित किया गया है। फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि अपीलकर्ता की प्रतिक्रिया असंगत, जानबूझकर और क्रूर थी, जिसमें पीड़ित के शरीर के महत्वपूर्ण अंगों पर बार-बार वार करना शामिल था।
पीठ ने कहा, “एक गृहिणी को अपने भूखे पति को गंभीर और अचानक उकसावे के लिए नहीं कहा जा सकता है, जब वह भोजन की तैयारी के दौरान उसे कुछ देर प्रतीक्षा करने के लिए कहती है।”
फैसला और सजा
अदालत ने धारा 302 आईपीसी के तहत दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। अपीलकर्ता द्वारा हिरासत में 16 साल की सजा काटने के बावजूद, उसे नरमी बरतने की दलील में कोई दम नहीं मिला।
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि यह कृत्य हत्या के बराबर नहीं होने वाले गैर इरादतन हत्या के मानदंडों को पूरा नहीं करता है, क्योंकि इसमें अचानक झगड़ा, आपसी उकसावे या अनजाने में कोई हरकत नहीं हुई थी। अदालत ने टिप्पणी की, “हमले का जानबूझकर किया गया तरीका और शरीर के महत्वपूर्ण अंगों का चयन क्षणिक नियंत्रण खोने की संभावना को नकारता है।”