पति की मृत्यु से पहले ससुर का निधन होने पर भी विधवा बहू उनकी सहदायिक संपत्ति से भरण-पोषण का दावा कर सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक विधवा बहू अपने मृत ससुर की संपत्ति, विशेष रूप से उनकी सहदायिक संपत्ति (coparcenary property) में से, भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है, भले ही उसके पति की मृत्यु से पहले ही ससुर का निधन हो गया हो। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने एक फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए यह स्पष्ट किया कि भरण-पोषण का दावा एक सांविधिक अधिकार है जो ससुर की मृत्यु के बाद भी बना रहता है और उनकी संपत्ति के खिलाफ लागू किया जा सकता है।

इस मामले में अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री विकास सिंह पेश हुए, जबकि प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता श्री पराग पी. त्रिपाठी और वरिष्ठ अधिवक्ता श्री त्रिदेव पैस ने किया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एक विधवा बहू द्वारा फैमिली कोर्ट, साकेत के 27 अगस्त, 2024 के फैसले के खिलाफ दायर एक अपील से संबंधित है। अपीलकर्ता के पति का निधन 2 मार्च, 2023 को हुआ था, जबकि उसके ससुर का निधन पहले ही 27 दिसंबर, 2021 को हो चुका था।

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अपीलकर्ता ने हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) की धाराओं 19, 21, 22 और 23 के तहत भरण-पोषण के लिए एक याचिका दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने उसकी याचिका को अधिनियम की धारा 22 के तहत गैर-सुनवाई योग्य मानते हुए खारिज कर दिया था। इसके बाद अपीलकर्ता ने इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी।

हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी सवाल यह था कि, “क्या एक बहू, जो अपने ससुर के निधन के बाद विधवा होती है, अपने मृत ससुर की सहदायिक संपत्ति से प्राप्त संपत्ति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है?”

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न्यायालय का विश्लेषण और HAMA की व्याख्या

हाईकोर्ट ने इस मामले का फैसला करने के लिए हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के संबंधित प्रावधानों का विस्तृत विश्लेषण किया।

धारा 19: विधवा बहू का भरण-पोषण

न्यायालय ने सबसे पहले HAMA की धारा 19 का अवलोकन किया। यह पाया गया कि धारा 19(1) एक विधवा बहू को “अपने ससुर से भरण-पोषण का दावा करने का एक सांविधिक अधिकार” प्रदान करती है। हालांकि, धारा 19(2) इस दायित्व पर एक महत्वपूर्ण प्रतिबंध लगाती है। फैसले में कहा गया है, “यह प्रावधान ससुर के दायित्व को केवल उनकी सहदायिक संपत्ति की सीमा तक सीमित करता है।” न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि ससुर के पास कोई सहदायिक संपत्ति नहीं है, तो बहू को उनकी स्व-अर्जित संपत्ति से भरण-पोषण का कोई लागू करने योग्य अधिकार नहीं है। यह दायित्व व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि सहदायिक संपत्ति के अस्तित्व से जुड़ा है।

धारा 21 और 22: ‘आश्रित’ के रूप में स्थिति

इसके बाद, पीठ ने धारा 21 पर विचार किया, जो “आश्रितों” को परिभाषित करती है। न्यायालय ने पाया कि धारा 21(vii) में स्पष्ट रूप से “उसके बेटे की विधवा” को परिभाषा में शामिल किया गया है। न्यायालय के अनुसार, यह प्रावधान एक विधवा बहू को अपने ससुर की संपत्ति से भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार देता है, बशर्ते कि वह अपने पति की संपत्ति या अपने स्वयं के संसाधनों से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो।

धारा 28: संपत्ति के हस्तांतरण पर प्रभाव

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न्यायालय ने HAMA की धारा 28 का भी हवाला दिया, जो यह सुनिश्चित करती है कि भरण-पोषण के अधिकार को संपत्ति के हस्तांतरिती (transferee) के खिलाफ भी लागू किया जा सकता है, यदि हस्तांतरण बिना किसी प्रतिफल के किया गया हो या यदि हस्तांतरिती को अधिकार की सूचना हो। न्यायालय ने कहा कि यह “एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है जो यह सुनिश्चित करता है कि विधवा का सांविधिक अधिकार हस्तांतरण के माध्यम से की गई चोरी के खिलाफ भी কার্যকর रहता है।”

विधायी मंशा और सामाजिक कल्याण

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फैसले में HAMA को “मूल रूप से एक सामाजिक कल्याण विधान” के रूप में चित्रित किया गया है, जिसे कमजोर व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। न्यायालय ने कहा कि इसके प्रावधानों की व्याख्या इस तरह से की जानी चाहिए जो एक विधवा बहू के अधिकारों को आगे बढ़ाए।

अंतिम निर्णय

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए पुष्टि की कि अपीलकर्ता की भरण-पोषण याचिका सुनवाई योग्य है। हालांकि अपीलकर्ता के वकील ने अंतरिम भरण-पोषण का अनुरोध किया, लेकिन अदालत ने ऐसा कोई आदेश पारित करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय फैमिली कोर्ट को “आवेदन का शीघ्र निपटान करने के लिए गंभीर प्रयास करने” का निर्देश दिया।

पक्षकारों को 9 सितंबर, 2025 को फैमिली कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है। इन निर्देशों के साथ अपील का निपटारा कर दिया गया।

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