राजस्थान हाईकोर्ट, जयपुर पीठ ने आरोपी द्वारा पीड़िता से विवाह किए जाने के बाद उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(n), 420 और 313 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति अनुप कुमार ढंड ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर आपराधिक विविध याचिका (एस.बी. क्रिमिनल मिसलेनियस (याचिका) संख्या 8774/2024) को स्वीकार करते हुए यह निर्णय दिया। कोर्ट ने यह उल्लेख किया कि दोनों पक्ष अब सुखपूर्वक वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे हैं और आपराधिक कार्यवाही जारी रहने से उनके विवाह की पवित्रता को ठेस पहुंचेगी।
पृष्ठभूमि:
पीड़िता “के” ने थाना शिप्रापथ, जयपुर सिटी (दक्षिण) में एफआईआर संख्या 901/2024 दर्ज करवाई थी, जिसमें आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ता ने शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए, जिससे वह गर्भवती हो गई, और बाद में उसे गर्भपात की दवाएं दीं। एफआईआर दर्ज होने के बाद, याचिकाकर्ता और पीड़िता ने 18.12.2024 को विवाह कर लिया और सक्षम प्राधिकारी से विवाह पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त किया।
पक्षकारों की दलीलें:
याचिकाकर्ता की ओर से श्री अनिल कुमार पूनिया ने प्रस्तुत किया कि विवाह और आपसी समझौते को देखते हुए एफआईआर और उससे संबंधित समस्त कार्यवाहियों को रद्द किया जाना चाहिए। इसके समर्थन में सौरभ मल्होत्रा बनाम राज्य राजस्थान एवं अन्य में दिनांक 06.01.2023 को पारित निर्णय का हवाला दिया गया।

लोक अभियोजक श्री विवेक चौधरी ने याचिका का विरोध किया, जबकि पीड़िता की ओर से अधिवक्ता श्री राजेंद्र सिंह ने याचिका का समर्थन किया।
पीड़िता “के” स्वयं भी न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुईं और याचिकाकर्ता से विवाह होने तथा अब उसे अभियोजन नहीं करना चाहने की इच्छा प्रकट की।
न्यायालय का विश्लेषण:
न्यायमूर्ति ढंड ने कहा कि विवाह को एक पवित्र संस्था माना गया है, जो सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने ब्लैक्स लॉ डिक्शनरी में ‘समझौता’ (compromise) की परिभाषा का हवाला देते हुए कहा कि पक्षकारों के बीच आपसी सहमति और सुलह को महत्व दिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने अपीलकर्ता बनाम राज्य एवं अन्य [क्रिमिनल अपील संख्या 394-395/2021] तथा जतिन अग्रवाल बनाम तेलंगाना राज्य एवं अन्य [क्रिमिनल अपील संख्या 456/2022] में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का उल्लेख किया, जिनमें समान परिस्थितियों में विवाह के बाद एफआईआर को रद्द कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति ढंड ने टिप्पणी की:
“चूंकि अभियोगिनी ‘के’ याचिकाकर्ता के साथ सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही है, अतः यह न्यायालय जमीनी सच्चाई से आंखें मूंदकर उनके वैवाहिक जीवन को बाधित नहीं कर सकता।”
कोर्ट ने आगे यह भी कहा:
“विवाह को दो व्यक्तियों के बीच एक पवित्र बंधन के रूप में माना जाता है, जो भौतिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंधों से परे होता है। प्राचीन हिंदू विधि के अनुसार, विवाह और इसके संस्कार धर्म (कर्तव्य), अर्थ (धन) और काम (भौतिक इच्छाओं) की प्राप्ति के लिए किए जाते हैं।”
निर्णय:
न्यायालय ने विशेष परिस्थितियों को देखते हुए और विवाह की पवित्रता की रक्षा हेतु एफआईआर संख्या 901/2024 तथा उससे उत्पन्न सभी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया।
हालांकि, न्यायमूर्ति ढंड ने स्पष्ट किया:
“इस आदेश के अंत में, यह उल्लेख करना आवश्यक है कि वर्तमान एफआईआर को केवल इस विशेष मामले की विशिष्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए रद्द किया गया है, जहां अभियोगिनी ‘के’ ने याचिकाकर्ता के साथ विवाह किया है और उनका विवाह सक्षम प्राधिकारी द्वारा पंजीकृत किया गया है। अतः इस आदेश को बलात्कार जैसे गंभीर अपराध को आपसी समझौते के आधार पर रद्द करने के लिए एक मिसाल के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।”
अंततः, आपराधिक विविध याचिका को स्वीकार कर लिया गया और लंबित सभी आवेदन भी समाप्त कर दिए गए।