एक विवाहित महिला के निजता के अधिकार, शारीरिक स्वायत्तता और डिजिटल गरिमा को सशक्त रूप से पुनः स्थापित करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया है, जिस पर अपनी पत्नी की अनुमति के बिना एक अंतरंग वीडियो रिकॉर्ड करके उसे साझा करने का आरोप है। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि विवाह किसी पति को अपनी पत्नी पर स्वामित्व या नियंत्रण का अधिकार नहीं देता, और ऐसा आचरण एक गंभीर कानूनी और नैतिक उल्लंघन है।
मामला क्या है?
यह मामला सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 67 के तहत दायर आपराधिक शिकायत से उत्पन्न हुआ, जो इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण को दंडित करता है। आरोप था कि आरोपी ने अपनी पत्नी के साथ एक अंतरंग क्रिया को छुपकर रिकॉर्ड किया और बाद में उसे सोशल मीडिया पर साझा कर दिया और उसके परिवार तथा समुदाय के अन्य सदस्यों को भी भेज दिया।
जांच के बाद 26.09.2022 को आरोप पत्र दाखिल किया गया और 30.09.2022 को संज्ञान आदेश पारित हुआ। आरोपी ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कार्यवाही रद्द करने की मांग की, यह दावा करते हुए कि चूंकि महिला उसकी विधिवत विवाहित पत्नी थी, इसलिए कोई अपराध बनता ही नहीं।

मुख्य कानूनी प्रश्न
- क्या वैवाहिक संबंधों में सहमति की आवश्यकता समाप्त या परिवर्तित हो जाती है, विशेष रूप से अंतरंग सामग्री के रिकॉर्डिंग और साझा करने के मामलों में?
- क्या आईटी अधिनियम की धारा 67 पति-पत्नी के बीच के मामलों में लागू हो सकती है, खासकर जब पत्नी ही डिजिटल अश्लीलता की शिकार हो?
- क्या हाईकोर्ट को धारा 482 के तहत हस्तक्षेप करना चाहिए, जब तथ्यात्मक विवाद मौजूद हों?
- क्या प्राथमिकी और आरोप पत्र से ऐसा प्रथम दृष्टया मामला बनता है जो मुकदमे की प्रक्रिया को जारी रखने को उचित ठहराए?
पक्षों की दलीलें
आवेदक (पति) की ओर से यह तर्क दिया गया कि वीडियो एक सहमति से हुआ कार्य था और उसके साझा किए जाने का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। साथ ही, पति-पत्नी के बीच समझौते की संभावना का हवाला देते हुए कहा गया कि यह घरेलू विवाद का मामला है।
राज्य की ओर से विरोध करते हुए कहा गया कि सहमति सिर्फ कार्य तक सीमित नहीं, बल्कि उसके रिकॉर्डिंग और प्रसार के लिए भी आवश्यक है। गुप्त रूप से वीडियो बनाना और उसे फैलाना पत्नी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और यह वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना कानून के तहत दंडनीय है।
कोर्ट की टिप्पणियाँ और निर्णय
न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने इस याचिका को खारिज करते हुए एक स्पष्ट संदेश दिया कि:
“विवाह किसी पति को अपनी पत्नी पर स्वामित्व या नियंत्रण का अधिकार नहीं देता, और न ही यह उसकी स्वायत्तता या निजता के अधिकार को कम करता है।”
अदालत ने आगे कहा:
“एक अंतरंग वीडियो को फेसबुक पर अपलोड करना और दूसरों के साथ साझा करना वैवाहिक संबंधों की पवित्रता का गंभीर उल्लंघन है। पति से अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी पत्नी द्वारा उस पर जताए गए विश्वास, निष्ठा और भरोसे का सम्मान करेगा।”
जज ने कहा कि निजता का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभिन्न हिस्सा है और पत्नी पति का विस्तार नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र व्यक्तित्व है जिसकी अपनी गरिमा, इच्छा और अधिकार हैं।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि तथ्यात्मक विवादों का निपटारा ट्रायल कोर्ट द्वारा किया जाना चाहिए और यह धारा 482 के दायरे में नहीं आता:
“तथ्यों के प्रश्नों का निर्णय और साक्ष्यों की विवेचना हाईकोर्ट की धारा 482 के अंतर्गत अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।”
अतः अदालत ने पाया कि कार्यवाही में कोई अवैधता, अनुचितता या प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं हुआ है जो न्यायिक हस्तक्षेप को उचित ठहराए।
अदालत ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अंतर्गत दाखिल आवेदन “निराधार” है और उसे खारिज कर दिया, जिससे आपराधिक मुकदमा आगे बढ़ सकेगा।