सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस के विनोद चंद्रन ने सोमवार को उस याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया, जिसमें अमेरिकी शॉर्ट सेलर वाइसरोय रिसर्च के आरोपों की जांच कराने का निर्देश देने की मांग की गई थी। वाइसरोय ने अरबपति अनिल अग्रवाल के खनन समूह को “वित्तीय रूप से अस्थिर” और ऋणदाताओं के लिए गंभीर खतरा बताया था।
मामला मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस अतुल चंदुरकर की पीठ के समक्ष आया। जस्टिस चंद्रन के अलग होने के बाद पीठ ने अधिवक्ता शक्ति भाटिया की याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी।
आरोप और याचिकाकर्ता के दावे
अधिवक्ता शक्ति भाटिया ने अपनी याचिका में कहा कि उन्होंने वाइसरोय की रिपोर्ट के कुछ हिस्सों को स्वतंत्र रूप से सत्यापित किया है, खासकर अघोषित संबंधित पक्ष लेनदेन के निष्कर्षों को। उन्होंने दावा किया कि यह सत्यापन MCA21 कॉर्पोरेट फाइलिंग पोर्टल, सेबी खुलासों और रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के रिकॉर्ड के आधार पर किया गया।

याचिका के अनुसार, कुछ उच्च-मूल्य के लेनदेन ऐसे पक्षों के साथ हुए जो न तो संबंधित पक्ष के रूप में घोषित किए गए और न ही अनिवार्य शेयरधारक अनुमोदन के लिए लाए गए।
वाइसरोय रिसर्च ने अपनी 85 पन्नों की रिपोर्ट में आरोप लगाया कि वेदांता रिसोर्सेज लिमिटेड (VRL) — जो लंदन स्थित माता कंपनी और मुंबई सूचीबद्ध वेदांता लिमिटेड की बहुलांश मालिक है — “भारी ऋणग्रस्त” है और “पूरा समूह ढांचा वित्तीय रूप से अस्थिर, परिचालन रूप से कमजोर है और ऋणदाताओं के लिए गंभीर, कम आंके गए जोखिम का कारण है।”
वाइसरोय ने यह भी बताया कि उसने वेदांता रिसोर्सेज के ऋण के खिलाफ दांव लगाया है, जिसे बॉन्ड की शॉर्ट सेलिंग कहा जाता है, जिसमें निवेशक को बॉन्ड की कीमत गिरने पर लाभ होता है।
कंपनी का पक्ष
वेदांता रिसोर्सेज ने इन आरोपों को “चयनित भ्रामक जानकारी और निराधार” बताते हुए खारिज कर दिया और कहा कि यह रिपोर्ट समूह को बदनाम करने के लिए बनाई गई है। कंपनी ने कहा कि वह अपने ऋणदाताओं और वित्तीय दायित्वों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
जस्टिस चंद्रन के मामले से अलग होने के बाद अब इसे नई पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा।