इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में उत्तर प्रदेश पुलिस के हेड कांस्टेबल तौफीक अहमद की सेवा समाप्ति को रद्द करते हुए विभाग को नये सिरे से जांच करने की छूट दी है। यह मामला खास इसलिए रहा क्योंकि अदालत में एक तरफ याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अनुरा सिंह पेश हुईं और दूसरी तरफ राज्य सरकार की ओर से उनके पिता, बरेली रेंज के पूर्व आईजी डॉ. राकेश सिंह, का पक्ष था।
मामले की पृष्ठभूमि
तौफीक अहमद पर पॉक्सो एक्ट के तहत आरोप लगने के बाद 11 दिसंबर 2023 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उनकी विभागीय अपील तत्कालीन आईजी बरेली रेंज डॉ. राकेश सिंह ने खारिज कर दी थी। इसके खिलाफ अहमद ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट याचिका (Writ-A No. 10159 of 2025) दाखिल की, जिसमें उनकी पैरवी अधिवक्ता अनुरा सिंह ने की।
याचिकाकर्ता के तर्क
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि विभागीय जांच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में आरोप साबित होने के साथ-साथ सेवा समाप्ति की सिफारिश भी कर दी, जबकि यूपी पुलिस अधीनस्थ अधिकारियों (दंड एवं अपील) नियमावली, 1991 के नियम 14(1) व परिशिष्ट-I के तहत जांच अधिकारी को दंड की सिफारिश करने का अधिकार नहीं है। इस व्याख्या का समर्थन हाईकोर्ट के 2019 के बलबीर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के फैसले में भी किया गया था।

अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने पाया कि 14 अप्रैल 2023 की जांच रिपोर्ट में आरोप सिद्ध होने के साथ सेवा समाप्ति की सिफारिश की गई, जो 1991 के नियमों के विपरीत है। उन्होंने कहा कि इस तरह की सिफारिश से पूरी रिपोर्ट ही कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण हो जाती है और इसे अनुशासनिक प्राधिकारी को अस्वीकार करना चाहिए था।
अदालत ने यह भी कहा कि अनुशासनिक प्राधिकारी ने स्वतंत्र विचार करने के बजाय सीधे जांच अधिकारी की सिफारिश को आधार बना लिया। सुप्रीम कोर्ट के कृष्ण राय (मृत) बनाम बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (2022), टाटा केमिकल लिमिटेड बनाम आयुक्त सीमा शुल्क (2015) और विजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2012) मामलों का हवाला देते हुए अदालत ने दोहराया कि विधि द्वारा प्रदत्त अधिकार केवल उसी तरीके से प्रयोग किए जा सकते हैं, जैसा कि क़ानून में निर्धारित है, और नियमों में प्रावधानित दंड से अधिक दंड नहीं दिया जा सकता।
फैसला
अदालत ने याचिका स्वीकार करते हुए जांच रिपोर्ट और बर्खास्तगी आदेश दोनों को रद्द कर दिया। आदेश दिया गया कि अहमद को उनकी पूर्व स्थिति में बहाल किया जाए। यदि विभाग दोबारा जांच करना चाहता है तो नया जांच अधिकारी नियुक्त कर तीन माह में कार्यवाही पूरी करे।
पेशेवर दृष्टिकोण से पिता-बेटी की भूमिका
अनुरा सिंह ने कहा कि यह मामला पूरी तरह पेशेवर आधार पर लड़ा गया। उन्होंने कानूनी आधारों पर अपने मुवक्किल का पक्ष रखा, जबकि उनके पिता राज्य पक्ष की ओर से सरकारी दायित्व निभा रहे थे। उन्होंने बताया कि पुलिस विभाग में आचरण को लेकर सख्त नीतियां हैं, विशेषकर पॉक्सो मामलों में, लेकिन हाईकोर्ट को ऐसे मामलों की समीक्षा का सर्वोच्च अधिकार है।
डॉ. राकेश सिंह ने भी कहा कि दोनों पक्षों ने मामले को पेशेवर तरीके से निपटाया। उन्होंने अपनी बेटी की क्षमता पर भरोसा जताते हुए कहा कि उनके सामने लंबा और सफल कानूनी करियर है।
अब बरेली जिला पुलिस द्वारा हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन कर तौफीक अहमद की बहाली की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।