उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सोमवार को राज्य के निजी स्कूलों द्वारा मनमाने तरीके से फीस वसूले जाने और छात्रों को महंगे दामों पर किताबें व यूनिफॉर्म खरीदने के लिए मजबूर करने के आरोपों से जुड़ी जनहित याचिका का निपटारा कर दिया।
यह याचिका हल्द्वानी निवासी दीपचंद्र पांडे ने दायर की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि राज्य के कई निजी स्कूल मनमाने शुल्क वसूल रहे हैं और अभिभावकों को कुछ चुनिंदा दुकानों से किताबें, कॉपियां और यूनिफॉर्म खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है।
राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि ऐसे मामलों की जांच के लिए एक सलाहकार समिति (Advisory Committee) का गठन किया गया है। अब यदि किसी अभिभावक को लगता है कि स्कूल ने अधिक शुल्क वसूला है, तो वे अपनी शिकायत इस समिति के समक्ष दर्ज करा सकते हैं।
नैनीताल के मुख्य शिक्षा अधिकारी (Chief Education Officer) ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत को बताया कि यह समिति फीस के अलावा यूनिफॉर्म, खेल शुल्क, शैक्षणिक यात्राओं और किताबें एक ही दुकान से खरीदने के दबाव जैसे मुद्दों की भी समीक्षा करेगी।
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने अदालत को बताया कि उसे अब तक किसी भी छात्र या अभिभावक की ओर से अत्यधिक शुल्क वसूली की कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई है।
दो न्यायाधीशों की खंडपीठ — न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी और न्यायमूर्ति आलोक महारा — ने सभी पक्षों को सुनने के बाद याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वे पहले अपनी शिकायत इस सलाहकार समिति के समक्ष रखें। अदालत ने यह कहते हुए याचिका का निपटारा कर दिया कि अब राज्य में शिकायत निवारण की उचित व्यवस्था बनाई जा चुकी है।
याचिकाकर्ता ने कहा था कि स्कूल प्रबंधन छात्र-छात्राओं को बाजार दर से अधिक कीमत पर किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने के लिए बाध्य करते हैं।
वहीं, स्कूलों की ओर से दलील दी गई कि सभी शैक्षणिक सामग्री एक ही स्थान पर उपलब्ध कराने का उद्देश्य अभिभावकों की सुविधा और सत्र के समय पर आरंभ को सुनिश्चित करना है।




