उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बागेश्वर जिले में बड़े पैमाने पर हो रहे सोपस्टोन (तालक) खनन से उत्पन्न पर्यावरणीय क्षति और इसके दुष्प्रभावों को लेकर राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) के अध्यक्ष को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि उनसे यह पूछा जाएगा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने यह आदेश एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। यह याचिका कांडा तहसील के कई गांवों में खनन के चलते मकानों में दरारें आने और पर्यावरणीय गिरावट को लेकर दाखिल की गई थी।
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया था कि कांडा क्षेत्र के निवासियों ने मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर अवैध सोपस्टोन खनन के कारण खेतों, मकानों और जल पाइपलाइनों को भारी क्षति पहुंचने की शिकायत की थी। पत्र के अनुसार, क्षेत्र में 147 खदानें हैं, जहां भारी मशीनों से खनन हो रहा है, जिससे आसपास के गांवों की संरचनाओं और पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा है।

इससे पूर्व, हाईकोर्ट ने गांव वालों के पत्र पर स्वतः संज्ञान लेते हुए क्षेत्र में सोपस्टोन खनन पर रोक लगा दी थी और निर्देश दिया था कि खनन से बने गड्ढों को भरवाया जाए। साथ ही, पहले से निकाले गए खनिज के नीलामी की अनुमति भी दी गई थी।
कोर्ट के पूर्व आदेशों के अनुपालन में ज़िला खनन अधिकारी ने जानकारी दी कि गड्ढों को भरने की जिम्मेदारी उत्तराखंड भूजल प्राधिकरण को सौंपी गई है। लेकिन याचिकाकर्ता ने इसका खंडन करते हुए दावा किया कि ऐसा कोई प्राधिकरण अभी तक गठित ही नहीं हुआ है।
इस पर अदालत ने अपने आदेश में संशोधन करते हुए निर्देश दिया कि अब खनन गड्ढों को ज़िला खनन अधिकारी और सिंचाई सचिव द्वारा नामित किसी भूजल विशेषज्ञ की देखरेख में भरा जाएगा। यह कार्य केंद्रीय भूजल बोर्ड और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण की निगरानी में किया जाएगा।
मामले की अगली सुनवाई 30 जून को निर्धारित की गई है।