उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दोषी ठहराए गए वैक्सीन वैज्ञानिक डॉ. आकाश यादव की सजा और दोषसिद्धि पर रोक लगा दी है, यह कहते हुए कि यह कदम “व्यापक जनहित” में उठाया गया है।
एकल पीठ के न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी ने कहा कि यादव की सजा पर रोक लगाना इसलिए जरूरी है क्योंकि वे वैक्सीन अनुसंधान एवं विकास में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं और उनकी वैज्ञानिक सेवाएं समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
डॉ. आकाश यादव, जिन्होंने IIT खड़गपुर से बायोटेक्नोलॉजी में पीएचडी की है, पिछले तीन वर्षों से भारतीय इम्युनोलॉजिकल्स लिमिटेड में वरिष्ठ प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। यह कंपनी देश की प्रमुख वैक्सीन निर्माता कंपनियों में से एक है और यादव सीधे वैक्सीन अनुसंधान से जुड़े हैं।

उनके खिलाफ दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज हुआ था और उनकी पत्नी की कथित आत्महत्या को लेकर उन्हें दहेज मृत्यु मामले में भी फंसाया गया था। हालांकि, रुद्रपुर की ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दहेज से जुड़े सभी आरोपों से बरी कर दिया था, लेकिन आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दोषी मानते हुए पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।
बाद में हाईकोर्ट ने उन्हें अपील लंबित रहने तक जमानत दे दी और सजा की निष्पादन पर भी रोक लगा दी। इसके बाद यादव ने अपनी दोषसिद्धि पर भी रोक लगाने की मांग करते हुए अपील दायर की, ताकि वे वैक्सीन विकास से जुड़ा अपना महत्वपूर्ण कार्य जारी रख सकें।
हाईकोर्ट ने कई कानूनी मिसालों का हवाला देते हुए सजा और दोषसिद्धि दोनों पर अंतिम निर्णय आने तक रोक लगा दी।
न्यायालय ने कहा, “विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान और उसके सामाजिक प्रभाव को देखते हुए यह न्यायोचित है कि दोषसिद्धि पर भी रोक लगाई जाए।”