उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सोमवार को देहरादून जिले में पंचायत चुनाव के दौरान फर्जी मतदान के आरोपों की जांच और वोट रद्द करने की मांग को लेकर दायर एक याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे चुनावी विवादों का समाधान केवल चुनाव याचिका के माध्यम से ही किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकल पीठ ने यह निर्णय सुनाते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 243-ओ और उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम, 2016 की धारा 131-एच के अनुसार, चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ी के आरोपों को लेकर सीधे रिट याचिका नहीं दायर की जा सकती।
यह याचिका राजेंद्र सिंह चौहान ने दायर की थी, जिन्होंने देहरादून के जोशी गोठान ब्लॉक से पंचायत सदस्य पद का चुनाव लड़ा था। याचिका में आरोप लगाया गया था कि मतदान केंद्र संख्या 82 के बूथ नंबर 75 (जूनियर हाई स्कूल, डाटानू, पूर्व नाम बदानू, ब्लॉक एवं तहसील कालसी) पर 38 फर्जी वोट डाले गए। उन्होंने इन वोटों को रद्द करने और स्वतंत्र जांच की मांग की थी।

राज्य निर्वाचन आयोग ने अदालत को बताया कि यह मामला एक चुनावी विवाद का है, जिसे केवल चुनाव याचिका के माध्यम से ही सुलझाया जा सकता है। अदालत ने अपने हालिया निर्णयों और सुप्रीम कोर्ट के 2018 के पश्चिम बंगाल राज्य निर्वाचन आयोग बनाम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) केस का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद उसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
साथ ही, अदालत ने 2021 के एक अन्य सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि इस प्रकार के फर्जी मतदान के आरोपों की सुनवाई केवल विधिसम्मत चुनाव याचिका के जरिये ही संभव है।
इन तर्कों को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और स्पष्ट किया कि चुनाव की वैधता को चुनौती देने का एकमात्र मार्ग कानून द्वारा निर्धारित चुनाव याचिका ही है।