उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल जिले में एक 12 वर्षीय नाबालिग लड़की से बलात्कार के मामले की गंभीरता को देखते हुए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) प्रहलाद नारायण मीणा को जांच की व्यक्तिगत रूप से निगरानी करने का निर्देश दिया है। यह मामला एक बुजुर्ग आरोपी के खिलाफ है, जिसकी पृष्ठभूमि अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ी बताई जा रही है, और जिसके चलते इलाके में सांप्रदायिक तनाव फैल गया था।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने SSP को निर्देश दिया कि वे इस मामले की प्रत्येक पखवाड़े (दो सप्ताह) में समीक्षा करें और हर तीन महीने में एक विस्तृत रिपोर्ट अदालत में पेश करें।
अदालत यह निर्देश उस याचिका की सुनवाई के दौरान दे रही थी जिसमें बलात्कार के आरोपी के मकान को गिराने के लिए जारी नोटिस को चुनौती दी गई थी। अदालत पहले ही उस विध्वंस नोटिस पर रोक लगा चुकी है।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता शिव भट्ट ने दलील दी कि जांच में POCSO कानून की धाराएं न जोड़े जाने की आशंका है और उन्होंने मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) से कराने की मांग की। इस पर SSP मीणा ने अदालत को बताया कि वह स्वयं मामले की निगरानी कर रहे हैं और चूंकि पीड़िता अनुसूचित जाति से संबंधित है, इसलिए आरोप उसी अनुरूप लगाए गए हैं। जांच एक उपाधीक्षक (DSP) स्तर के अधिकारी को सौंपी गई है।
अदालत ने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए स्पष्ट किया कि SSP को इसकी नियमित और व्यक्तिगत समीक्षा करनी चाहिए और इसकी तिमाही रिपोर्ट अदालत को दी जानी चाहिए। अगली सुनवाई की तारीख 5 अगस्त निर्धारित की गई है।
मामले के प्रकाश में आने के बाद शहर में तनाव फैल गया था। दक्षिणपंथी संगठनों ने अल्पसंख्यक समुदाय की दुकानों में तोड़फोड़ की थी। पिछले सप्ताह हुई सुनवाई में अदालत ने आरोपी सहित 62 अन्य को नगर निकाय द्वारा भेजे गए विध्वंस नोटिसों पर असहमति जताई थी। अदालत ने कहा था कि ऐसे कदम स्थिति को और भड़का सकते हैं। नगर निकाय ने तब नोटिस वापस लेने की बात कही थी।