उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उस महिला को विवाह परामर्श (marital counselling) की सलाह दी है, जिसने यह कहते हुए तलाक की अर्जी दायर की थी कि उसके पति का परिवार स्वयंभू धर्मगुरु रामपाल का अनुयायी है और हिन्दू धर्म का पालन नहीं करता। अदालत ने कहा कि दंपति को पहले परामर्श के ज़रिए सुलह या आपसी समझौते की संभावना तलाशनी चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश रविन्द्र मैठानी और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने यह सुझाव उस महिला की अपील पर दिया, जिसकी तलाक याचिका पहले पारिवारिक न्यायालय ने ख़ारिज कर दी थी।
महिला ने अपने आवेदन में कहा कि उसके और पति के बीच “आस्था और जीवन के तौर-तरीकों” में बुनियादी अंतर हैं। उसने आरोप लगाया कि ससुराल पक्ष ने उसे हिन्दू धर्म का पालन करने से रोक दिया और घर में बने मंदिर व देवी-देवताओं की मूर्तियाँ पैक कर बाहर रख दी गईं।
 
याचिका में कहा गया कि उसके पति का परिवार रामपाल के अनुयायी होने के कारण स्वयं को हिन्दू नहीं मानता और हिन्दू रीति-रिवाजों का पालन नहीं करता। उसने बताया कि उसके पति ने उनके बेटे का नामकरण संस्कार करने से भी इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि “उनके आध्यात्मिक गुरु के मत में ऐसी कोई परंपरा नहीं है।”
महिला का कहना था कि हिन्दू धर्म उसके लिए केवल आस्था नहीं बल्कि जीवन जीने का तरीका है, और इस पर रोक लगाना मानसिक उत्पीड़न के समान है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने फिलहाल कोई अंतिम आदेश नहीं दिया और दंपति को विवाह परामर्श हेतु भेजने का निर्देश दिया, ताकि आपसी सुलह की संभावना पर विचार किया जा सके।


 
                                     
 
        



