सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है कि यदि किसी संपत्ति का उपहार प्राकृतिक प्रेम और स्नेह के आधार पर दिया गया हो, और उसमें दाता के लिए जीवन हित (Life Interest) सुरक्षित रखा गया हो, तो वह वैध सेटलमेंट डीड मानी जाएगी और उसे एकतरफा रूप से रद्द नहीं किया जा सकता। यह फैसला N.P. Saseendran बनाम N.P. Ponnamma एवं अन्य, सिविल अपील संख्या 4312/2025 में सुनाया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने पिता द्वारा पुत्री के पक्ष में की गई संपत्ति के हस्तांतरण को बरकरार रखा।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारडीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि यदि सेटलमेंट डीड के मूल तत्व जैसे कि स्वैच्छिक हस्तांतरण, प्रतिफल का अभाव (No consideration), और तत्काल अधिकारों का हस्तांतरण (vesting in praesenti) मौजूद हों, तो जीवन हित या कुछ शर्तें उसकी वैधता को प्रभावित नहीं करतीं।
कोर्ट ने कहा, “जीवन हित का आरक्षण और कुछ शर्तों का होना सेटलमेंट के स्वरूप को नहीं बदलता, खासकर जब दाता ने स्पष्ट रूप से प्रेम और स्नेह को हस्तांतरण का आधार बताया हो।”

मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता एन.पी. ससीन्द्रन ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी बहन एन.पी. पोन्नम्मा के पक्ष में निर्णय दिया गया था। उनके पिता, एन.पी. नारायण पिल्लै ने 1985 में एक पंजीकृत दस्तावेज़ (Ext.A1) के माध्यम से पोन्नम्मा को संपत्ति हस्तांतरित की थी, जिसमें प्रेम और स्नेह का उल्लेख था, साथ ही ₹2,000 तक की बंधक रखने और आय का उपभोग करने का अधिकार अपने पास सुरक्षित रखा था।
हालाँकि, 1993 में उन्होंने उस दस्तावेज़ को रद्द करते हुए एक विक्रय विलेख (sale deed) ससीन्द्रन के पक्ष में बना दिया। पोन्नम्मा ने दावा किया कि 1985 का दस्तावेज़ एक उपहार/सेटलमेंट था और उसे एकतरफा रद्द नहीं किया जा सकता।
निचली अदालतों ने इसे वसीयत (Will) मानते हुए पोन्नम्मा का दावा खारिज कर दिया था, लेकिन केरल हाईकोर्ट ने इसे सेटलमेंट डीड मानते हुए पोन्नम्मा को संपत्ति का स्वामित्व प्रदान किया।
मुख्य कानूनी प्रश्न
- क्या 1985 का दस्तावेज़ वसीयत था, उपहार था या सेटलमेंट?
- क्या जीवन हित के साथ किया गया उपहार/सेटलमेंट एकतरफा रद्द किया जा सकता है?
- क्या परिवार में संपत्ति हस्तांतरण के लिए प्रेम और स्नेह एक मान्य आधार है?
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
न्यायमूर्ति महादेवन ने 1985 के दस्तावेज़ की सामग्री का विश्लेषण करते हुए कहा कि यद्यपि पिता ने कुछ अधिकार सुरक्षित रखे, लेकिन उन्होंने स्पष्ट रूप से पोन्नम्मा को स्वामित्व सौंपा था – वह भी “प्रेम और स्नेह” के आधार पर।
दस्तावेज़ में लिखा था:
“नीचे दी गई संपत्ति आपको निवास हेतु और जीवन यापन हेतु हस्तांतरित की जाती है… अब से आप निर्माण, टैक्स भुगतान, और खरीद प्रमाण पत्र प्राप्त करने जैसे सभी अधिकार रखती हैं।”
कोर्ट के अनुसार:
- दस्तावेज़ से तत्काल स्वामित्व का हस्तांतरण हुआ था।
- जीवन हित ने अधिकारों के हस्तांतरण को निरस्त नहीं किया।
- दाता का उद्देश्य संपत्ति का हस्तांतरण करना था।
- डीड पंजीकृत थी और लाभार्थी ने उसे स्वीकार कर लिया था।
महत्वपूर्ण मिसालें:
- P.K. Mohan Ram बनाम B.N. Ananthachary
- K. Balakrishnan बनाम K. Kamalam
कोर्ट ने कहा:
“दस्तावेज़ का नामकरण (nomenclature) महत्त्वपूर्ण नहीं है। असली बात उसके उद्देश्य, मंशा और कानूनी प्रभाव की है। एक बार जब उपहार या सेटलमेंट वैध रूप से निष्पादित और स्वीकार कर लिया गया हो, तो उसे एकतरफा रूप से रद्द नहीं किया जा सकता।”
कोर्ट का निर्णय
- 1985 का दस्तावेज़ एक सेटलमेंट डीड था, न कि वसीयत।
- इसमें स्वामित्व का वैध और तत्काल हस्तांतरण हुआ था।
- पारिवारिक सेटलमेंट में प्रेम और स्नेह को मान्य प्रतिफल (consideration) माना जाता है।
- 1993 में किया गया रद्दीकरण और विक्रय अमान्य था।
- बेटी का संपत्ति पर स्वामित्व बरकरार रहेगा।
निर्णय से मुख्य निष्कर्ष
- सेटलमेंट डीड में जीवन हित और शर्तें हो सकती हैं, फिर भी वह वैध रहती है।
- एक बार किया गया उपहार या सेटलमेंट, जिसे लाभार्थी ने स्वीकार कर लिया हो, उसे TPA की धारा 126 के तहत एकतरफा रद्द नहीं किया जा सकता।
- स्थावर संपत्ति के उपहार/सेटलमेंट के लिए कब्जा (possession) देना अनिवार्य नहीं है।
- प्राकृतिक प्रेम और स्नेह परिवार में संपत्ति हस्तांतरण के लिए एक वैध कानूनी आधार है।